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महाराजा अजितसिंहजी यद्यपि बादशाह ने महाराज से अजमेर ले लिया था, तथापि उसे हर समय इनका भय बना रहता था और यह इनको मारकर निश्चित होने का मौक़ा ढूँढ़ता था । इसीलिये उसने महाराजकुमार अभयसिंहजी से घनिष्ठता बढ़ानी प्रारंभ की, और राजा जयसिंहजी के द्वारा भंडारी रघुनाथ को अपनी तरफ़ मिला लिया । इसके बाद इन्हीं दोनों के द्वारा वह अभयसिंहजी को उनके पिता के विरुद्ध भड़काने का षड्यंत्र रचने लगा। परन्तु इस पर भी जब महाराजकुमार ने उसके भय और प्रलोभनों पर ध्यान नहीं दिया, तब एक रोज़ उसने राजा जयसिंहजी और भंडारी रघुनाथ के द्वारा एक जाली पत्र लिखवाकर किसी तरह उस पर उन (महाराजकुमार ) के दस्तखत करवा लिए । इसके बाद वही पत्र गुप्त रूप से अभयसिंहजी के छोटे भ्राता बखतसिंहजी के पास भेज दिया गया। इसमें राज्य की रक्षा के लिये वृद्ध महाराज को मार डालने का आग्रह किया गया था। जैसे ही यह पत्र उनको मिला, वैसे ही एकबार तो वह चकित और किंकर्तव्य-विमूढ़ से हो गए । परंतु अन्त में उन्होंने देश और भ्राता पर आनेवाले भावी संकट का विचार कर भवितव्यता के आगे सिर झुकाना ही स्थिर किया । इसी के अनुसार वि० सं० १७८१ की आषाढ़ सुदी १३ ( ई० सन् १७२४ की २३ जून ) को, रात्रि के पिछले पहर, निद्रित अवस्था में ही, महाराजा अजित इस लोक से विदा हो गएं । ___ महाराज के प्रताप से मुसलमान लोग जितना भय खाते थे, हिन्दू उतना ही निर्भय रहते थे । इन्होंने बालकपन से ही संसार के अनेक परिवर्तन देखे थे । एक समय वह था कि जब यह अपनी माता के गर्भ में ही थे कि इनके पिता का स्वर्गवास हो गया। इसके बाद इनके जन्म लेते ही औरङ्गजेब जैसा प्रबल बादशाह इनका शत्रु बन बैठा, और उसकी शत्रुता के कारण इनकी वीर-माता को भी प्राणों
१. मासिरुल उमरा, भा० ३ पृ. ७५८ । ( इसी पृष्ठ की टिप्पणी में ' तारीखे मुज़फ्फरी' का
हवाला देकर लिखा है कि कुछ लोगों का कहना है कि महाराजा अजितसिंह बादशाह की कुछ भी परवा नहीं करते थे । इसीसे बादशाह ने और उसके वज़ीर ऐतमादुद्दौला कमरुद्दीनखाँ ने उसके बेटे बख़तसिंह को, बाप का उत्तराधिकारी बना देने का प्रलोभन देकर, उसको मारने के लिये तैयार कर लिया । इंडियन ऐंटिक्वेरी, भा० ५८, पृ०
४७-५१ । महाराज के साथ कुल मिलाकर ६२ या ६६ प्राणियों ने अपनी खुशी से चिता में प्रवेशकर. हृदय-ज्वाला को शांत किया था। इनमें ६ रानियाँ थीं । (देखो अजितोदय, सर्ग ३१, श्लो० ३२-३३ और राजरूपक, पृ० २४७-२५४)।
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