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महाराजा अजितसिंहजी इसकी सूचना पाते ही बादशाह ने शरफुद्दौला इरादतमंदखाँ को ७,००० जात और ६,००० सवारों का मनसब तथा २,००,००० रुपये नकद देकर महाराज पर चढ़ाई करने की आज्ञा दी । साथ ही ५०,००० शाही सवारों और अनेक अमीरों को भी उसके साथ कर दिया । इनके अलावा उसने आँबेर-नरेश जयसिंहजी, मुहम्मदखाँ बंगश और राजा गिरधर बहादुर आदि अमीरों को भी उसके साथ जाने को लिख दिया। इसके बाद ही वि० सं० १७८० की ज्येष्ठ सुदी १३ ( ई० सन् १७२३ की ५ जून ) को नागोर का परगना राव इन्द्रसिंह को दे दिया गया । परन्तु उस समय उसके शाही सेना के साथ दक्षिण में होने के कारण समयानुसार नजर आदि का कार्य उसके पौत्र मानसिंह ने पूरा किया ।
इसी समय हैदरकुलीख़ाँ भी अहमदाबाद से लौटकर रिवाड़ी आ पहुँचा । इसकी सूचना पाते ही बादशाह ने उसे अजमेर की सूबेदारी और साँभर की फौजदारी देकर उधर जाने की आज्ञा दी । अतः वह भी वहीं से लौटकर नारनौल में इरादतखाँ के साथ हो लिया। ___ इस प्रकार शाही दल को आता देख महाराज ने गढ़ बीटली ( के किले ) की रक्षा का भार तो ऊदावत वीर अमरसिंह को सौंपा और स्वयं साँभर होते हुए जोधपुर चले आएँ।
१. कुछ दिन बाद जयपुर-नरेश जयसिंहजी ने आकर शाही सेना की सहायता से नागोर पर
इंद्रसिंह का अधिकार करवा दिया। इस पर राज्य की तरफ से महाराजकुमार आनन्दसिंह उसके मुकाबले को भेजे गए । परंतु इन्होंने डीडवाना पहुँच स्वयं ही स्वतंत्रता का झन्डा खड़ाकर दिया । अन्त में बहुत कुछ समझाने-बुझाने पर यह तो शांत हो गए, पर इस
गड़बड़ के कारण नागोर इंद्रसिंह के अधिकार में ही रह गया। २. लेटर मुगल्स, भा॰ २, पृ० ११३ और अजितोदय, सर्ग ३०, श्लो० ३३-४० और
४२-४४। ३. लेटर मुगल्स, भा॰ २, पृ० ११३ और अजितोदय, सर्ग ३०, श्लो० ४१ । ४. लेटर मुग़ल्स, भा॰ २, पृ० ११३ और पृ० ११४ का फुटनोट * ।
'अजितोदय' में महाराज का शाही सेना से युद्ध करने के लिये त्रिवेणी से आगे पहुँचना, जयसिंहजी का बीच में पड़, इन्हें युद्ध से रोकना और इनका वापस अजमेर लौट आना लिखा है । (देखो सर्ग ३०, श्लो० ४६-५२ ) पर यह ठीक प्रतीत नहीं होता।
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