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मारवाड़ का इतिहास
इस पर बादशाह ने भी सहज ही झगड़ा मिटता देख उत्तर में महाराज के नाम एक फरमान लिख भेजा । उसमें इनके पहले के किए कार्यों की प्रशंसा के बाद दोनों सूबों के ले लेने के विषय में इधर-उधर के बहाने बनाए गए थे । अन्त में यह भी लिखा था कि अजमेर का सूबा तो तुम्हारे ही अधीन रक्खा जाता है, कुछ दिनों में अहमदाबाद का सूबा भी तुम्हें लौटा दिया जायगा । इस फरमान के साथ ही बादशाह की तरफ से महाराज के लिये खासा खिलअत, जड़ाऊ सरपेच, एक हाथी और एक घोड़ा उपहार में भेजा गया ।
वि० सं० १७७६ के मँगसिर ( ई० सन् १७२२ के दिसम्बर ) में बादशाह ने नाहरखाँ को अजमेर की दीवानी और सांभर की फ़ौजदारी तथा उसके भाई रुहल्लाखाँ को गढ़ बीटली की किलेदारी दी । इसपर वे दोनों महाराज के वकील खेमसी भंडारी के साथ दिल्ली से अजमेर चले आएँ । इस घटना को अभी तक एक महीना भी न होने पाया था कि एक रोज नाहरखाँ ने महाराज के सामने कुछ अनुचित शब्द कह दिए । इससे क्रुद्ध होकर इन्होंने उसे और उसके भाई को मरवा डाला, और उसका शिविर लूट लिया । उसके साथ के यवनों में से कुछ तो हमले में मारे गए और कुछ बचकर निकल भागे।
१. लेटर मुग़ल्स, भा॰ २, पृ० १११-११२ । ग्रांटडफ की 'हिस्ट्री ऑफ मरहटाज़' में लिखा
है कि इसी समय बादशाह ने खाँ दौरों के कहने से आगरे के सूबे का प्रबन्ध भी महाराज
को सौंप दिया था। ( देखो भा० १, पृ० ३५१)। २. वि० सं० १७७६ की मँगसिर बदी १ के महाराज के, दयालदास के नाम, सांभर से लिखे,
पत्र से प्रकट होता है कि गेसूखाँ ने हिडौंन से जयपुर-नरेश जयसिंहजी का थाना उठाकर वहाँ पर अधिकार कर लिया था। इस पर महाराज ने अपनी सेना को ऑबेरवालों की फ़ौज के साथ भेजकर कार्तिक बदी ५ को वहाँ पर फिर जयसिंहजी का अधिकार करवा
दिया । गेसूखाँ मय फ़ौज के मारा गया। ३. लेटर मुगल्स, भा॰ २, पृ० ११२ । नाहरखा और रघुनाथ भंडारी ये दोनों ही महाराज
का पत्र लेकर संधि के लिये पहले बादशाह के पास गए थे। ४. अजितोदय, सर्ग ३०, श्लो० ३१-३३ । ५. लेटर मुगल्स, में नाहरखाँ के मुख से अनुचित शब्दों के निकलने का उल्लेख नहीं है ।
( देखो भा॰ २, पृ० ११२ ) वि० सं० १७८० की पौष वदि ६ के, मेड़ते से लिखे, महाराज के दयालदास के नाम के पत्र में लिखा है कि नाहरखाँ ७८ दिन में मारवाड़ में पहुँचेगा । परंतु इस पत्र के पिछले दो अंकों में कुछ गड़बड़ मालूम होती है।
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