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मारवाड़ का इतिहास
आदि भी बनवाए थे।
कर्नल टॉड ने अपने राजस्थान के इतिहास' में लिखा है कि अजितसिंहजी ने अपने सिक्के अलग ढलवाए थे, और इसी तरह अपना नाप (गज ), अपना तोल, अपनी अदालतें और अपने ओहदे (पद) भी अलग कायम किए थे । परंतु अब तक उस समय का सिक्का देखने में नहीं आया है।
२४ छोटे ज़नाने महल । (इन्होंने चामुण्डा के मन्दिर की मरम्मत भी करवाई थी। ) नगर में घनश्यामजी का मन्दिर (पंच-मंदिरों वाला ), मूल नायकजी का मन्दिर, मंडोर में- एक थंभे के आकार का महल, वहाँ के ज़नाने मकानात ( वि० सं० १७७५ में ), जसवंतसिंहजी का देवल, गणेशजी की मूर्ति-सहित भैरवोंवाला दालान और पहाड़ में काटकर बनाई हुई वीरों की मूर्तियोंवाला दालान । ( यह दालान वि० सं० १७७१ में बनवाया था )। १. किले में की चाँदी की पूरे कद की मुरलीमनहोर, शिवपार्वती, चतुर्भुज विष्णु और हिंगलाज
( देवी ) की मूर्तियाँ भी इन्होंने ही वि० सं० १७७६ में बनवाई थीं। २. ऐनाल्स ऐंड ऐंटिक्विटीज़ ऑफ राजस्थान (क्रुक संपादित), भा॰ २, पृ० १०२६ ।
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