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महाराजा अजितसिंहजी 'बाँबे गजेटियर' में लिखा है कि अहमदाबाद पहुँचकर महाराज ने ग़ज़नीखाँ जालोरी को पालनपुर और जवाँमर्दखाँ बाबी को राधनपुर का हाकिम ( फौजदार) बनाया था।
__'मीरातेअहमदी' से ज्ञात होता है कि उसी वर्ष महाराज को प्रसन्न करने के लिये कोल्हापुर के कोतवाल ने ईद के त्योहार पर गाय की कुरबानी रोक दी । इससे वहाँ के सारे मुसलमान भड़क उठे।
पहले लिखा जा चुका है कि महाराज ने पेमसी को नागोर विजय की आज्ञा दी थी। उसी के अनुसार उसने नागोर को घेरकर युद्ध छेड़ दिया। इसी अवसर पर इंद्रसिंह के बहुत से सरदार भी लालच में पड़कर महाराज के पक्ष में चले आए। इससे जब नगर पर महाराज का अधिकार हो गया, तब राव इंद्रसिंह किला छोड़कर अपने परिवार के साथ कासली नामक गाँव में जा रहा । परन्तु उसका पीछा करता हुआ जोधा दुर्जनसिंह रात्रि में वहाँ जा पहुँचा, और उसने उसके द्वितीय पुत्र मोहनसिंह को भी मार डाला। यह देख इंद्रसिंह भागकर दिल्ली में बादशाह के पास चला गया, और फिर से महाराज के विरुद्ध उसके कान भरने लगा। परंतु इस बार उसे विशेष सफलता नहीं हुई। यह घटना वि० सं० १७७३ के श्रावण (ई० सन् १७१६ की जुलाई ) की है।
इसी वर्ष बादशाह ने हैदरकुली को सोरठ का फौजदार बनाया। उस समय वहाँ का प्रबंध महाराजकुमार अभयसिंहजी के अधिकार में होने से पहले तो उसे हस्तगत करने की उसकी हिम्मत न हुई, परंतु अंत में किसी तरह वहाँ पर उसका अधिकार हो गया।
१. बाँबे गजेटियर, भा १, खंड १, पृ० २६६ । २. बाँबे गजेटियर, भा १, खंड १, पृ. २६६, फुटनोट ३ । ३. 'राजरूपक' में इस घटना की तिथि सावन सुदी ३ लिखी है । ( देखो पृ. २०० )। ४. अजितोदय, सर्ग २३, श्लो. २-१३, और राजरूपक, पृ० २०१-२०२ । वि. सं. १७७३
की सावन सुदी ७ के एक पत्र से भी इसी वर्ष नागोर पर महाराज का अधिकार होना
सिद्ध होता है। ५. बाँबे गजेटियर, भा ,१, खंड १, पृ. २६६-३ . • ।
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