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मारवाड़ का इतिहास
आगरे की मुगल-सेना ने बगावत का झंडा खड़ाकर, वि० सं० १७७६ की ज्येष्ठ बदी ३० ( ई० सन् १७१६ की ८ मई ) को, शाहजादे मुहम्मद अकबर के पुत्र निकोसियर को तिमूर सानी के नाम से बादशाह घोषित कर दिया । इससे इन्हें अपना विचार स्थगित करना पड़ा।
इसके कुछ दिन बाद ही रफीउद्दरजात सख़्त बीमार हो गया । अतः महाराज अजितसिंहजी ने और सैयद-भ्राताओं ने मिलकर आषाढ़ बदी ३ ( २५ मई ) को उसे तो जनाने में भेज दिया और उसकी इच्छानुसार उसके बड़े भाई रफीउद्दौला को आषाढ़ बदी ५ ( २७ मई ) के दिन शाहजहाँ सानी के नाम से गद्दी पर बिठा दिया । इसके बाद ही इन्हें शाइस्ताखाँ और आँबेर-नरेश जयसिंहजी के मिलकर आगरे में उपद्रव करने के विचार की सूचना मिली । अतः वहाँ पर अधिकार करने के लिये पहले सैयद हुसैनअली भेजा गया, और इसके कुछ दिन बाद कुतुबुल्मुल्क ( अब्दुल्लाखाँ ) और महाराज ने भी रफीउद्दौला को लेकर उधर प्रयाण किया । अब्दुल्लाखाँ का विचार मार्ग से ही ऑबेर पर चढ़ाई कर राजा जयसिंहजी को दन्ड देने का था, परन्तु महाराजा अजितसिंहजी ने कह सुनकर उसे उधर जाने से रोक लिया । इसके बाद वि० सं० १७७६ की भादों बदी ५ ( ई० सन् १७१६ की २५ जुलाई ) को महाराज तो कोरी के मुक्काम से मथुरा स्नान के लिये चले गए और कुतुबुल्मुल्क बादशाह को लेकर फतेहपुर सीकरी की तरफ़ मुड़ गया । भादों बदी १२.( १ अगस्त ) को आगरे के
१. मुंतखिबुल्लुबाब, भा॰ २, पृ॰ २५ । २. वि० सं० १७७६ की आषाढ़ बदी १० (ई० सन् १७१६ की १ जून) को रफ़ीउद्दरज़ात
राजयक्ष्मा की बीमारी से मर गया । ( देखो लेटर मुग़ल्स, भा० १, पृ० ४१८) इसने
केवल ३ महीने के करीब राज्य किया था। ३. 'लेटर मुग़ल्स' में रफ़ीउद्दरज़ात का गद्दी से उतारा जाकर ज़नाने में भेजा जाना लिखा
है । ( देखो भा० १, पृ० ४१८)। ४. मुंतख़िबुल्लुबाब, भा० १, पृ० ८२६ । ५. अजितोदय, सर्ग २७, श्लो. ५३ और लेटर मुग़ल्स, भा० १, पृ० ४२० । ६. मुंतख़िबुल्लुबाब, भा० १, पृ० ८३३ । ७. यह बात महाराज द्वारा अपने एक सरदार के नाम लिखे उस समय के पत्र से भी प्रकट होती है । उसमें लिखा है कि अपने पर होनेवाली सैयदों की चढ़ाई की सूचना पाते ही
आँबेर-नरेश जयसिंहजी ने अपने सरदारों को भेज हमसे सहायता की प्रार्थना की। इसी से हमने सैयदों से कह-सुनकर उक्त चढ़ाई रुकवा दी।
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