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महाराजा अजितसिंहजी किले पर सैयदों का अधिकार हो गया, और निकोसियर कैद कर लिया गया । इसकी सूचना पाते ही अब्दुल्लाखाँ अपनी चाल तेजकर भादों सुदी १३ ( १६ अगस्त) को 'मोल' के मुक़ाम पर पहुँचा । यहीं पर महाराज भी मथुरा की यात्रा से लौटकर उससे आ मिले । इतने ही में हुसैन अली भी लौटकर इनके पास आ गया । अतः यह सब लोग मिलकर दिल्ली को लौट चले । विद्यापुर में पहुँचने पर प्रथम आश्विन सुदी ५ या ६ ( ७ या = सितम्बर) को रफीउद्दौला भी बीमार होकर मर गया । परंतु कुतुबुल्मुल्क ने दूसरे शाहजादे के दिल्ली से आने तक इस बात को गुप्त रक्खा । इसके बाद शाहजादे रोशन अख़्तरें के दिल्ली से वहाँ पहुँच जाने पर रफीउद्दौला की मृत्यु प्रकट की गई,
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' अजितोदय' से भी इस बात की पुष्टि होती है । परन्तु उसमें एक तो आगरे पर की चढ़ाई कारी उद्दौला की मृत्यु के बाद मुहम्मदशाह के समय होना लिखा है और दूसरा निकोसियर के पकड़े जाने के बाद महाराज का आगरे से मथुरा जाना और वहां से लौटने पर सैयद - भ्राताओं को बेर पर चढ़ाई करने से रोकना लिखा है । ( देखो सर्ग २७, श्लो० ५३-५७ और सर्ग २८, श्लो० १ - २६ ) और ( राजरूपक, पृ० २१६ - २१७ ) महाराज के दयालदास के नाम लिखे एक पत्र में ( पत्र का कुछ हिस्सा फट जाने से तिथि आदि नहीं मिली है ।) लिखा है कि अकबर के बेटे आगरे के क़िले में क़ैद थे। उन्होंने जयसिंह आदि के कहने से बगावत की । इस पर हम और हसनअली खाँ वहाँ भेजे गए । हमने बादशाह को भी चढ़ाई करने को तैयार किया। इससे भादों बदी ३० को आगरे का किला फतह हुआ । निकोसियर दोनों भतीजों सहित पकड़ा जाकर क़ैद किया गया। इसके बाद जयसिंह पर चारों तरफ फ़ौजों की चढ़ाई हुई। इससे उसके मुल्क के हाथ से निकल जाने की नौबत आ पहुँची । यह देख उसने अपने ५ आदमी हमारे पास भेजे, और आजिज़ी करवाई । हमारी हर प्रज्ञा के पालन का वादा किया। इस पर हमने उसे साढ़े तीन हज़ारी मनसब दिलवाकर आँबेर को बचाया, और सोरठ की फ़ौजदारी दिलवाकर उसे अपने पास नियत किया । साथ ही उस पर गई हुई फ़ौजों को भी पीछा बुलवा लिया। इसके बाद हमने उसकी इच्छा के अनुसार अपने ४ आदमी भेज कर उसकी तसल्ली करवाई । अनंतर शीघ्र ही शाहजहां ( सानी ) भी बीमार होने के कारण मर गया । इस पर हमने जहाँशाह के बेटे रौशन अख्तर को दिल्ली से बुलवा कर और आश्विन बदी २ को हाथ पकड़ कर शाही तख्त पर बिठा दिया। साथ ही उसका नाम मोहम्मदशाह ग़ाज़ी रक्खा। इसके बाद हमारे देश को लौटने का इरादा करने पर बादशाह ने ख़िलत, जड़ाऊ साज़ का घोड़ा, हाथी, मोतियों की माला, जड़ाऊ सरपेच और जड़ाऊ कटार भेट किए । इनके अलावा अजमेर का ...... ( यहीं से पत्र खंडित है ) ।
१. लेटर मुग़ल्स, भा० १, पृ० ४२२-४३० । परन्तु इसमें अब्दुल्ला ख़ाँ का स्वयं ही कोसी के मुकाम पर बेर जाने का विचार स्थगित करना लिखा है ।
२. विद्यापुर फतेहपुर सीकरी से ३ कोस उत्तर में है ।
३. लेटर मुग़ल्स, भा० १, पृ० ४३१ ।
४. यह बहादुरशाह के चौथे पुत्र खुजिस्तामख्तर का पुत्र था ।
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