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महाराजा अजितसिंहजी इसके बाद महाराज के कहने से नए बादशाह ने अपने पहले ही दरबार में जजिया उठा देने और तीर्थो पर लगने वाले कर को हटा देने की आज्ञा देदी।
इस प्रकार दिल्ली के झगड़े से निपटकर वि० सं० १७७६ की ज्येष्ठ बदी ४ ( ई० सन् १७१६ की २६ अप्रेल ) को महाराज ने वहां (दिल्ली) से गुजरात की तरफ जाने का विचार किया । परंतु रफीउद्दरजात के गद्दी पर बैठने का समाचार फैलते ही दिल्ली पहुँचने पर फागुन सुदी २ को किला घेर लिया गया । फागुन सुदी १० बुधवार को फ़र्रुखसियर को कैद कर लिया, और रफ़ीउद्दरजात को गद्दी पर बिठा दिया । साथ ही हमने उससे कहकर जज़िया माफ करवा दिया, और तीर्थों पर की रुकावट भी दूर करवा दी।
इसके बाद वैशाख सुदी १० को फर्रुखसियर के गले में तसमा डलवाकर मरवा डाला । फिर ज्येष्ठ बदी ११ रविवार को हमने बादशाह से मारवाड़ में आने की आज्ञा माँगी । इस पर बादशाह ने खिलअत, जड़ाऊ साज़ का घोड़ा, कानों में पहनने के लिये कीमती मोती, जड़ाऊ सरपेच, जड़ाऊ तलवार, हाथी, हथनी, तुमनतोग (बड़ा मरातब ) आदि दिए ।
पहले जब हम फर्रुखसियर से मिले, तो उसने जयसिंहजी से सलाहकर हमको मरवाना चाहा। दूसरी दफे फिर घातकों को भीतर छिपाकर हमें बुलवाया। इसी प्रकार तीसरी बार शिकार में बुलाकर धोका देने का विचार किया । चौथी दफे पास बिठा कर मरवाना चाहा । इसी प्रकार एक बार बाग में बारूद बिछाकर और आग लगानेवालों को पास में खड़े कर हमको वहाँ बुलवाया । परन्तु उसे इनमें सफलता नहीं हुई । हम चाहते, तो जयसिंहजी को मार कर जयपुर की गद्दी पर किसी दूसरे को बिठा देते । परन्तु हमने उसे बचा दिया । पहले तो उसके वहीं पर ( दिल्ली में ही ) मारने का इरादा किया गया था। इसके बाद जब वह जयपुर की तरफ़ चला, तो उसके पीछे फौज रवाना की गई । परन्तु हमने नवाब को समझाकर फ़ौज की चढ़ाई रुकवा दी । फिर उसे ( जयसिंहजी को ) मनसब में
ऑबेर दिलवाकर वहाँ ( आँबेर ) से ७०० कोस पर के दक्षिण में के बीदर की फौजदारी दिलवाई। इसलिये अब वह वहाँ जायगा । हम उसे एकबार पहले भी ऑबेर की गद्दी दिलवा चुके हैं ।
लेटर मुगल्स में लिखा है कि वि. सं. १७७६ की वैशाख सुदी ६ ( ई. सन् १७१६ की १७ अप्रेल ) की रात को फ़र्रुखसियर मार डाला गया । ( देखो भा० १, पृ० ३७६-३६३ )। १. मुंतखिबुल्लुबाब, भा॰ २, पृ. ८१७ । यद्यपि फ़र्रुखसियर ने भी पहले अपने राज्य के प्रथम
वर्ष ( वि० सं० १७७० ई. सन् १७१३ ) में ही जज़िया उठा दिया था, तथापि बाद में इनायतउल्लाखाँ के जो इस विषय में मक्के के शरीफ की एक अर्जी लाया था, कहने से अपने राज्य के छठे वर्ष ( वि० सं० १७७४=ई, सन् १७१८) में इसे फिर से जारी कर दिया । (देखो लेटर मुगल्स, भा० १ पृ. ३३८ और मुंतखिबुल्लुबाब, भा० २ पृ०
७७५)। २. महाराजा अजित सिंहजी के नामका महाराना संग्रामसिंहजी द्वितीय का वि सं० १७७५ की
वैशाख बदी ११ का पत्र । इसमें उन्होंने जज़िया और तीर्थों पर की रुकावट उठवा देने के कारण महाराज को धन्यवाद दिया है।
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