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मारवाड़ का इतिहास
और इसके दो दिन बाद ही द्वितीय आश्विन बदी १ (१८ सितम्बर ) को रौशन अख़्तर नासिरुद्दीन मोहम्मदशाह के नाम से गद्दी पर बिठा दिया गया ।
वि० सं० १७७६ की कार्त्तिक बदी ५ ( ई० सन् १७१६ की २२ अक्टोबर ) को बादशाह ने अजमेर के सूबे का प्रबन्ध सैयद नुसरतयारखाँ से लेकर महाराज के अधीन कर दिया और साथ ही मनसब में भी ३०० सवारों की वृद्धि कर शायद २,५०० सवार दुअस्पा सेस्पा कर दिए ।
इसके बाद महाराज जोधपुर की तरफ़ रवाना हुए, और मार्ग से जयसिंहजी को साथ लेकर मनोहरपुर होते हुए जोधपुर चले आएँ । यहाँ पर जयसिंहजी का बड़ा आदर-सत्कार किया गया । वह भी कुछ दिनों तक यहाँ रहकर अपने देश को लौट
गएँ ।
१. लेटर मुग़ल्स, भा० २, पृ० १-२ ।
२. हिजरी सन् ११३१ की १६ ज़िलहिज का कर्मान । इसमें के २,५०० सवारों के बाद के कुछ शब्द नष्ट हो गए हैं ।
'लेटर मुग़ल्स' से भी अजमेर की सुबेदारी मिलने की पुष्टि होती है । देखो भा० २, पृ० ४ । ३. अजितोदय, सर्ग २८, श्लो० ३०-३३ । 'लेटर मुग़ल्स' में लिखा है कि महाराज अजितसिंहजी के बीच में पड़ने पर भी जयसिंहजी ने अबतक शत्रुता नहीं छोड़ी थी । इसलिये सैयदों का विचार उनपर चढ़ाई करने का था । ( देखो भा० २, पृ० ३ ) परंतु महाराज अजितसिंहजी ने जोधपुर जाते हुए मार्ग में जयसिंहजी को समझा कर शांत करने का वादा कर लिया । इससे यह चढ़ाई रोक दी गई। इसके बाद द्वितीय आश्विन सुदी ३ (५ अक्टोबर ) को जयसिंहजी के टोडे से वापिस आँबेर लौट जाने की सूचना मिल गई । अतः यह झगड़ा शान्त हो गया । ( देखो भा० २, पृ० ४ ) ‘राजरूपक' में महाराज का मँगसिर में जोधपुर आना लिखा है । उसके अनुसार बूँदी - नरेश बुधसिंहजी भी इनके साथ थे । ( देखो पृ० २१८ ) ।
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४. अजितोदय, सर्ग २६ श्लो० १ ३५ । परन्तु उक्त काव्य में सैयद - भ्राताओं और दूसरे के क़ैद किए जाने पर जयसिंहजी का जोधपुर से लौटना लिखा है ।
इसी के आगे उसमें महाराज का ८ महीनों के लिये मेड़ते जाकर रहना और फिर अजमेर पर चढ़ाई करना भी लिखा है । ( देखो सर्ग २६, श्लो० १-६६ ) ' राजरूपक' में भी जयसिंहजी का एक सैयद के मारे जाने पर जोधपुर से जाना लिखा है । इसके बाद वि० सं० १७७७ की कार्त्तिकबदी १२ को महाराज का मेड़ते पहुँचना और फिर अजमेर पर अधिकार कर लेना भी उससे प्रकट होता है । (देखो पृ० २२० ) ।
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एक के मारे
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