________________
मारवाड़ का इतिहास
इस पर वि० सं० १७६३ की चत्र बदी ५ ( ई० सन् १७०७ की १२ मार्च) को, २८ वर्ष की अवस्था में, महाराज ने अपनी राजधानी जोधपुर - नगर में प्रवेश किया । इसके दूसरे दिन ( माधोदासोत ) मेड़तिय कुशलसिंह ने शाही सैनिकों से मेड़ता छीन लिया । इसी प्रकार कुछ दिनों में मारवाड़ के अन्य प्रदेशों ( सोजत और पाली आदि ) पर भी महाराज का अधिकार हो गया ।
इस पर मुसलमानों और बगड़ीवालों ने मिलकर एक बनावटी दलथंभन को सोजत का मालिक बना दिया । इसकी सूचना पाते ही महाराज स्वयं सेना सहित वहाँ जा पहुँचे । छः दिन के भीषण युद्ध के बाद शत्रु तो हारकर भाग गया, और सोजत पर महाराज का अधिकार हो गया । इसके बाद कुछ दिनों में वहाँ का प्रबन्ध ठीककर यह फिर जोधपुर लौट आएँ ।
महाराज अजित सिंहजी ने औरङ्गजेब के कारण २८ वर्षों तक बड़ी-बड़ी तकलीफें उठाई थीं । यदि उस समय मारवाड़ के सरदार देश काल के अनुसार बुद्धिमानी, दृढ़ता और वीरता से अपना धर्म न निभातें, तो इनके प्राणों तक का बचना कठिन था । इसके अलावा इन २८ वर्षो में धर्मांध यवनों ने तमाम मारवाड़ के - - खासकर जोधपुर के मंदिरों को नष्ट कर उनके स्थानों पर मसजिदें बनवा दी थीं । इसीसे चारों तरफ़ ब्राह्मणों के घंटा और शंखनाद की एवज में मुल्लाओं की अज़ाँ सुनाई देती थी । हिन्दुओं का धन, धर्म, इज्जत और प्राण तक संकट में पड़ गए थे । परन्तु महाराज ने राज्य पर अधिकार करते ही इन सब बातों को उलट दिया । चारों तरफ़ मसजिदों के स्थान पर मंदिर दिखाई देने लगे । जाँ की आवाज़ों का स्थान फिर से घंटा और शंखनाद ने
१. अजितोदय, सर्ग १७. श्लो० ११ । 'राजरूपक' में भी महाराज के जोधपुर - प्रवेश की यही तिथि लिखी है । परन्तु उसमें किले पर जाने की तिथि चैत्र वदी १३ दी है | ( देखो १० १७० ) ।
२. अजितोदय, सर्ग १७, श्लो० १२ । उम समय किले का प्रत्येक स्थान गंगाजल और तुलसी दल से पवित्र किया गया था। (हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब, भा० ५ ० २६२ ) ।
६. 'अजितोदय' में वहीं पर दलथंभन का मारा जाना लिखा है । ( देखो सर्ग १७, श्लो० १४- १७ ) परन्तु अन्य इतिहासों में इस घटना का उल्लेख नहीं मिलता ।
किसी किसी ख्यात में इस घटना का समय वि० सं० १७६३ लिखा है । यह विचारणीय है । ४. अजितोदय, सर्ग १७, श्लो० १४- १८ |
५. मुंतख़िबुल्लुबाब, भा० २, पृ० ६०५-६०६ ।
२६२
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com