________________
महाराजा श्रजितसिंहजी महाराज ने वहाँ भी उनका पीछा किया, तब वे अपना साज-सामान छोड़ दुनांड़े होते हुए मेड़ते की तरफ भाग गए । परन्तु इस घटना की सूचना पाते ही जोधपुर के हाकिम जाफरखाँ ने मोहकम सिंह से मेड़ते की हकूमत छीन ली । अतः लाचार होकर वह नागोर चला गया ।
वि० सं० १७६३ की भादों बदी ७ ( ई० सन् १७०६ की ११ अगस्त ) को महाराज के द्वितीय पुत्र बख़्तसिंहजी का जन्म हुआ । इसके बाद महाराज ने रोहीचे पर चढ़ाई कर वहाँ के चौहानों को हराया ।
वि० सं० १७६३ की फागुन वदी १४ ( ई० सन् १७०७ की २० फ़रवरी ) को दक्षिण में अहमदनगर के पास बादशाह औरङ्गजेब का देहांत हो गया । इसकी सूचना पाते ही महाराज ने अपनी सेना को एकत्रित कर सूराचंद से जोधपुर पर चढ़ाई कर दी । वहाँ के किलेदार जाफ़रकुली ने भी पहले तो इनका सामना किया, परन्तु अन्त में वह राठोड़ वाहिनी के वेग को रोकने में असमर्थ हो किला छोड़कर भाग गया ।
१. यहाँ पर दोनों सेनाओं के बीच घमसान युद्ध हुआ था ।
२. 'हिस्ट्री ऑफ औरंगज़ेब' में ( ई० सन् १७०४ में ) औरंगज़ेब का महाराज को मेड़ते का अधिकार देना लिखा है । परन्तु उसमें यह भी लिखा है कि महाराज ने वहाँ का प्रबंध कुशलसिंह को सौंप दिया था । इससे ( नागोर के स्वामी इन्द्रसिंह का पुत्र ) मोहकमसिंह, जो अजितसिंहजी की बाल्यावस्था में इनकी तरक से बादशाह से बराबर लड़ता रहा था, नाराज़ होकर ( ई० सन् १७०५ में ) बादशाह की तरफ़ हो गया । (देखो भा० ५, पृ० २६० - २६१ ) । परन्तु इन्द्रसिंह का पुत्र मोहकमसिंह प्रारंभ से ही महाराज के विरुद्ध था । शाही मनसब छोड़कर महाराज की तरफ से यवनों से लड़ने वाला मेड़तिया मोहकमसिंह उससे भिन्न था ।
३. अजितोदय, सर्ग १६, श्लो० २० ४२ । 'राजरूपक' में अजित सिंहजी के जोधपुर पर अधिकार कर लेने पर मोहकम का मेड़ता छोड़ नागोर जाना लिखा है । (देखो पू० १६८) ।
४. अजितोदय, सर्ग १७, श्लो० २ - ३ |
५. अजितोदय, सर्ग १७, श्लो० ४ ।
६. 'क्रॉनॉलॉजी ऑफ मॉडर्न इन्डिया' में उस दिन ( हि० सन् १९१८ की २८ जीकाद को ) ३ मार्च का होना लिखा है । यह ठीक प्रतीत नहीं होता । ( देखो पृ० १४६ ) कहीं-कहीं फागुन बदी ३० ( ता० २१ फ़रवरी) भी लिखी मिलती है ७. बॉंबेगज़ेटियर, भा० १, खंड १, पृ० २६५ । अजितोदय, सर्ग १७ श्लो० ४-७ ।
1
२६१
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com