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मारवाड़ का इतिहास
वि० सं० १७५१ की मँगसिर बदी १४ ( ई० सन् १७०२ की ७ नवम्बर) को महाराज की चौहान-वंश की रानी के गर्भ से महाराजकुमार अभयसिंहजी का जन्म हुा । उस समय महाराज जालोर में थे, और चाँपावत उदयसिंह इनका प्रधान हो ।
वि० सं० १७६० ( ई० सन् १७०३ ) में शुजाअतखाँ के मरने पर शाहजादा मुहम्मदआजम गुजरात का सूबेदार हुआ । उसने काज़म के पुत्र जाफरकुली को जोधपुर का और दुर्गादास को पाटन का फ़ौजदार बनाया।
इसके कुछ दिन बाद ही बादशाह की आज्ञा से शाहजादे आजम ने दुर्गादास को अपने अहमदाबाद के दरबार में बुलाकर मार डालने का इरादा किया । परन्तु उसकी जल्दबाजी से दुर्गादास को संदेह हो गया, और इसीसे वह बचकर निकल गयो । यद्यपि
आजम की आज्ञा से सफ़दरखाँ बाबी ने उसका पीछा किया, तथापि दुर्गादास के पौत्र द्वारा मार्ग में ही रोक लिए जाने से उसे सफलता नहीं हुई । यहीं पर दुर्गादास का उक्त पौत्र मारा गया । परन्तु दुर्गादास अपने कुटुम्बियों के साथ मारवाड़ में पहुँच महाराज
१. अजितोदय, सर्ग ६, श्लो० ४-१५ । २. अजितोदय, सर्ग १५, श्लो० ५२ । ३. 'हिस्ट्री ऑफ औरङ्गजेब' में शुजाअत का वि० सं० १७५८ की श्रावण बदी १ ( ई०
सन् १७०१ की ६ जुलाई ) को मरना लिखा है । ( देखो भा० ५, पृ० २८७ )। ४. 'बाँबेगजेटियर', भा० १ खंड १, पृ० २६१, 'राजरूपक' में वि० सं० १७५७ (ई० सन्
१७००) में शुजाअत का मरना और आज़म का गुजरात का सूबेदार होना लिखा है | उसके अनुसार वि० सं० १७६१ में जाफर का मारवाड़ में आना प्रकट होता है। ( देखो
पृ० १६०)। ५. शाहज़ादे की आज्ञा से दुर्गादास पाटन से आकर अहमदाबाद के पास करिज़ में ठहरा
या । उस दिन द्वादशी का दिन होने से वह एकादशी के व्रत का पारण कर दरबार में उपस्थित होना चाहता था । उधर शाहज़ादे ने शिकार को जाने के बहाने से सेना और मनसबदारों को पहले से ही तैयार कर यथास्थान खड़ा कर दिया था और दुर्गादास के मारने का काम सफदरखाँ बाबी को सौंपा था। परंतु दुर्गादास के आने में देर होती देख शाहज़ादे ने उसको बुला लाने के लिये बार-बार हलकारे भेजने शुरू किए । इससे उसको संदेह हो गया, और वह पारण किए बिना ही अपने कैंप को जलाकर मारवाड़ की तरफ
चल दिया । ( हिस्ट्री ऑफ़ औरङ्गजेब, भा० ५, पृ० २८७-२८८)। ६. यह युद्ध पाटन के मार्ग में हुआ था। इसमें सफदर का पुत्र और मुहम्मद अशरफ़ गुरनी
ज़ख़मी हुए।
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