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महाराजा अजितसिंहजी १.७५७ ( ई० सन् १७०० ) में उसने इन्हें अपने पास आने को लिखा ।
वि० सं० १७५७ के द्वितीय श्रावण ( ई० सन् १७०० के अक्टोबर ) में अजितसिंहजी ने ४,००० सवार लेकर शाही दरबार में उपस्थित होने की इच्छा प्रकट की । परन्तु इसके साथ ही इन्होंने खर्च के लिये कुछ रुपये नकद और कुछ परगने दिए जाने का भी लिखा। बादशाह ने रुपयों के देने के लिये तो अजमेर के खजाने पर आज्ञा भेज दी, परन्तु जागीर के बाबत महाराज के दरबार में उपस्थित होने पर दिए जाने का वादा किया ।
इसके बाद बादशाह ने महाराज को कई बार बुलवाया । पर यह उसके पास नहीं गएँ।
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ख्यातों में लिखा है कि वि० सं० १७५७ के पौष (ई० सन् १७०० की जनवरी) में महाराज अजितसिंहजी ने शाही सेना को भगाकर जोधपुर पर अधिकार कर लिया था। परन्तु वि० सं० १७५६ (ई० सन् १७०२) में शाहज़ादे मुहम्मद मुअज्जम ने उसे वापिस छीन लिया । यह भी ठीक प्रतीत नहीं होता। 'अजितोदय' में भी इसका उल्लेख नहीं है।
१. 'बाँबेगजेटियर', भा० १, खंड १, पृ० २६०-२६१ । २. 'हिस्ट्री ऑफ़ औरंगजेब', भा० ५, पृ० २८६ । ३. हिस्ट्री ऑफ औरंगज़ेब, भा० ५, पृ० २८७ ।
जोधपुर राज्य की मुनशीगीरी के दफ्तर से एक फरमान मिला है । यह औरंगजेब के पौत्र (शाहज़ादे मुअज्जम बहादुरशाह के पुत्र) मुइजुद्दीन की तरफ से लिखा गया था। इसकी मुहर में हि० सन् १११३ और आलमगीरी सने जलूस ४६ (वि० सं० १७५८-ई. सन् १७०२) लिखा है । इससे प्रकट होता है कि पद्मसिंह के द्वारा लिखा पढ़ी होने के बाद बादशाह की तरफ से उसी के साथ महाराज के लिये खासा खिलत, निशान, सातहज़ारी ज़ात, सात हज़ार सवारों का मनसब और जोधपुर के अधिकार का फरमान मय खास पंजे के भेजा गया था । साथ ही इन्हें जहां तक हो शीघ्र २०-३० हज़ार सवार और इतने ही पैदल सिपाही साथ लेकर दिल्ली के निकट मिलने का लिखा गया था और ऐसा करने पर और भी पद और मर्यादा में वृद्धि करने का वादा किया गया था । उसी में आगे अपने भी शीघ्र दिल्ली पहुँचने का ज़िक्र था।
यह फरमान २६ जिलहिज को लिखा गया था। परन्तु इसके लिखे जाने के सन् का निर्णय करना कठिन है । सम्भवतः यह वि० सं० १७६३ की वैशाख सुदि १ (ई० सन् १७०६ की २ अप्रेल) को लिखा गया होगा; क्योंकि इसमें बादशाह के दिल्ली की तरफ रवाना होने का उल्लेख है।
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