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महाराजा अजितसिंहजी गजसिंह की कन्या से महाराज का विवाह निश्चित कर इन्हें शीघ्रही उदयपुर आने को लिखा । इस पर महाराज भी अपने वीरों को लेकर तत्काल वहाँ जा पहुँचे । यह देख महाराजकुमार को शांत हो जाना पड़ा। इसके बाद वि० सं० १७५३ ( ई० सन् १६१६ ) में विवाह हो जाने पर महाराज लोटकर पीपलोद के पहाड़ों में चले आए।
इन्हीं दिनों शुजाअतखाँ फिर जोधपुर आया और यहाँ के उपद्रव के कारण कुछ मास तक उसे यहीं रहना पड़ा। इसी बीच उसने दुर्गादास से संधि की शर्ते तय कर ली। अतः दुर्गादास ने पहले तो बादशाह की पोती को उस (बादशाह) के पास भेज दिया और फिर स्वयं दक्षिण में पहुँच उसके पोते को भी उसे सौंप दिया । इसकी एवज़ में बादशाह ने उसे पहले मेड़ता और बाद में धंधुका तथा गुजरात के अन्य कई परगने जागीर में दिएँ । वि० सं० १७५५ ( ई० सन् १६९८ ) में इत्तमादखाँ मर गया, और उसका बेटा मुहम्मद मुशीन दीवान बनाया गया । इस पर बादशाह ने उसे दुर्गादास को मेड़ता १. यह घटना 'अजितोदय' (सर्ग १५, श्लो० २६-३५) और 'राजरूपक' (पृ. १४१)
से ली गई है । 'अजितग्रंथ' में पिता-पुत्र में फिर झगड़ा होने का उल्लेख नहीं है ।
( देखो पृ० ४२१)। 'वीरविनोद' में प्रकाशित मारवाड़ के इतिहास में इस घटना का समय वि० सं० १७५३ (ई० सन् १६६६ ) दिया है ।
२. 'बाँवेगजेटियर', भा० १, खंड १, पृ० २८६ । ३. दुर्गादास ने वहाँ के प्रबंध के लिये अपना प्रतिनिधि भेज दिया था । 'हिस्ट्री ऑफ
औरंगजेब' में ई० सन् १६६४ से ही दुबारा इस विषय की बातचीत का शुरू होना लिखा है । ( देखो भा० ५, पृ० ३८१)। ४. 'राजरूपक' में लिखा है कि वि० सं० १७५३ (ई० सन् १६६६) के अंत में
दुर्गादास ने अकबर की बेगम और कन्या को, जो शाहज़ादे के दक्षिण जाने के समय से ही मारवाड़ में थीं, बादशाह के पास भेज दिया, और वि० सं० १७५४ (ई० सन् १६६७) में वह स्वयं शाहज़ादे के पुत्र को लेकर बादशाह के पास दक्षिण में पहुँचा । इस समय महाराज अपने वीरों के साथ कुंडल के पहाड़ों में ठहरे हुए थे। इसके बाद
अगले वर्ष जालोर पर महाराज का अधिकार हो गया । (देखो पृ० १४३-१४६)। 'मासिरेआलमगीरी' में लिखा है कि अहमदाबाद के नाज़िम शुजाअतखाँ के समझाने से दुर्गादास ने वि० सं० १७५५ की द्वितीय ज्येष्ठ बदी ५ (ई. सन् १६६८ की २० मई ) को अकबर के पुत्र बुलंदअख्तर को, जो उस (अकबर ) के भागने के समय मारवाड़ में पैदा हुआ था, ले जाकर बादशाह को सौंप दिया। इस पर बादशाह ने प्रसन्न होकर दुर्गादास को जड़ाऊ खिलअत, तीन हज़ारी जात और ढाई हज़ार सवारों का मनसब दिया ।
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