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मारवाड़ का इतिहास
सौंप देने की आज्ञा दी, और मुहम्मदमुनीम को जोधपुर का किलेदार बनाया । लगातार दो वर्षों से वर्षा न होने के कारण इस वर्ष मारवाड़ में बड़ा अकाल पड़ा । वि० सं० १७५६ ( ई० सन् १६९९ ) में दुर्गादास के कहने से बादशाह ने महाराज को कुछ परगनों के साथ ही जालोर और सांचोर का शासने सौंप दिया । इसके बाद वि० सं०
मआसिरेआलमगीरी, पृ० ३६५ । 'हिस्ट्री ऑफ औरंगज़ेब' में जड़ाऊ खंजर, सोने का पदक, मोतियों की माला और १,००,००० रुपये देना लिखा है । (देखो भा० ५, पृ० २८६ ) ।
वि० सं० १७५५ की पौष सुदी १३ ( ई० सन् १६६६ की ३ जनवरी) को बादशाह ने दुर्गादास के नाम एक फ़रमान लिखा । उसमें उसे सेवस्तान की तरफ़ जाकर शाहजादे अकबर को ले आने की आज्ञा दी थी ।
१७५३ = ई० सन् १६६६ )
'मीरातेअहमदी' में लिखा है कि हि० सन् १९०७ ( वि० सं० में ईश्वरदास और शुजाअतखाँ की लिखा-पढ़ी से मामला तय हो जाने पर दुर्गादास ने शाहजादे अकबर की कन्या सफ़ीयतुन्निसा बेग़म को बादशाह के पास भेज दिया । दुर्गादास ने एक पढ़ी-लिखी औरत को रख कर उक्त बेग़म को कुरान याद करवा दिया था । बादशाह को बेगम के द्वारा यह बात ज्ञात होने पर बड़ी प्रसन्नता हुई, और उसने शुजाअतखाँ को लिखा कि जैसे हो, वैसे वह दुर्गादास को बड़ी इज्ज़त के साथ दरबार में भेज दे। इसी के साथ उसने यह भी आज्ञा दी कि दुर्गादास को ( जोधपुर पहुँचने पर ५०,००० और अहमदाबाद पहुँचने पर ५०,००० कुल ) १,००,००० रुपये दिए जायँ, और मेड़ता उसकी जागीर में कर दिया जाय। इस पर दुर्गादास भी अकबर के पुत्र (बुलंदअख्तर ) को लेकर अगले वर्ष बादशाह के पास दक्षिण में जा पहुँचा । बादशाह की तरफ़ से उसके अमीरों ने दुर्गादास की पेशवाई में उपस्थित हो उसका बड़ा आदर-सत्कार किया । (देखो भा० १, पृ० ३४६-३५० ) ।
उस समय बादशाह भीमा नदी पर स्थित इसलामपुर में था । जब दुर्गादास ने बादशाह की आज्ञानुसार शस्त्र खोलकर दरबार में जाना अंगीकार न किया, और बहुत दबाने पर तलवार पर हाथ रक्खा, तब उसे शस्त्र लेकर ही उपस्थित होने की आज्ञा दी गई । (हिस्ट्री ऑफ औरंगज़ेब, भा० ५, पृ० २८५-२८६ ) ।
१. अजितोदय, सर्ग १५, श्लो० ५१ ।
२. मुजाहिदख़ाँ जालोरी को, जो पहले वहाँ का शासक था, इनकी एवज़ में पालनपुर और से में जागीर दी गई थी । 'हिस्ट्री ऑफ औरंगज़ेब' में ई० सन् १६६८ में बादशाह द्वारा महाराज को जालोर, साँचोर और सिवाना दिया जाना लिखा है (देखो भा० ५, पृ० २८४) ।
'राजरूपक' में महाराज का वि० सं० १७५५ की आषाढ़ सुदी ५ को जालोर पहुँचना लिखा है। उसमें यह भी लिखा है कि वि० सं० १७५४ ( ई० सन् १६६८) में महाराज कुछ दिन जोधपुर जाकर रहे थे, और उस अवसर पर शाहज़ादे ( अज़ीम ) ने इनकी बड़ी ख़ातिर की थी । इसके बाद यह जालोर लौट गए । परन्तु यह सब कवि-कल्पना ही प्रतीत होती है ।
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