________________
मारवाड़ का इतिहास चौहान, सीसोदिया आदि उनके संबन्धियों ने मारवाड़ को उजाड़ कर देश-भर में गमनागमन के मार्ग रोक दिए।
___ इसी प्रकार चाँपावत उदयसिंह ने सोजत की यवन-वाहिनी को परास्त किया। जोधावतों के एक दल ने मारवाड़ के उत्तरी भाग के मुसलमानों का मार्ग रोका, और दूसरे ने शाही सेना-नायक नूरअली को मार भगाया । ___ इसके बाद चाँपावत उदयसिंह और मेड़तिया मोहकमसिंह ने गुजरात की ओर जाकर उपद्रव आरंभ किया। इसकी सूचना पाते ही सैयद मोहम्मद की सेना ने इनका पीछा किया । इस पर ये लोग उससे लड़ते-भिड़ते रत्नपुर होकर पाली पर टूट पड़े। यहाँ के युद्ध में बाला राठोड़ों ने अच्छी वीरता दिखाई । इसके बाद मेड़तिये मोहकमसिंह ने सोजत और जैतारण लूट मेड़ते पर अधिकार कर लिया ।
वि० सं० १७४१ ( ई० सन् १६८४ ) में अजमेर के शाही सेना नायक ने राठोड़ों पर चढ़ाई की। इसी बीच मौका पाकर भाटियों ने मंडोर पर अधिकार कर लिया; परन्तु कुछ दिन बाद ही उक्त नगर फिर मुसलमानों के अधिकार में चला गया ।
१. 'राजरूपक' के अनुसार इसने शाही मनसब छोड़ कर बालक महाराज का पक्ष ग्रहण किया था:
मोहकमसिंह किल्याण तण, मेड़तियौ पणबंध ; तज मनसफ सुरतांणरौ, मिलियौ फौज कमंध ।
(देखो पृ० ८३)। 'अजितग्रंथ' से इस घटना का करीब एक वर्ष पूर्व सोनग के समय होना प्रकट होता है । उसमें यह भी लिखा है कि यह मोहकमसिंह अकबर की बगावत के समय तहव्वरखाँ के शरीक था। इसीसे उसके मारे जाते ही अपनी जागीर तोसीणे में चला गया था। जब बादशाह ने इसको मरवाने का विचार किया, तब यह आकर सोनग के साथ हो गया । ( देखो छंद ६५४, ६६० और ६७४)।
___'हिस्ट्री ऑफ़ औरंगजेब' में भी मोहकमसिंह का ई० सन् १६८१ में राठोड़ों के साथ होना लिखा है । (देखो भा० ५, पृ० २७६)।
२. 'राजरूपक' में पाली के युद्ध का वि० सं० १७४० की पौष सुदी ६ को होना लिखा है ।
(देखो पृ०६७)। ३. 'अजितग्रन्य' में लिखा है कि वि० सं० १७४० की सावन बदी १४ (ई० सन् १६८३
की ६ जुलाई ) को असदखाँ और शाहज़ादा अजमेर से दकन को चले और इनायतखाँ को मारवाड़ का भार सौंपा गया। यहां के सरदार बराबर उपद्रव कर रहे थे। (देखो
छंद ६१८-१०२२)। ४ 'राजरूपक' में भी इस घटना का वि० सं० १७४१ के प्रारंभ में होना लिखा है । (देखो पृ० १००)।
२७६
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com