________________
मारवाड़ का इतिहास
इस प्रकार महाराज के प्रकट होने से उनके सरदारों का उत्साहित होना देख अजमेर के शाही हाकिम ने शीघ्र ही इस घटना की सूचना बादशाह के पास भेज दी । इससे उसकी चिन्ता और भी बढ़ गई, और उसने अजमेर के सूबेदार के नाम महाराज को पकड़ लेने की आज्ञा लिख भेजी । यह कार्य कुछ ऐसा सहज नहीं था । इसलिये बहुत कुछ उद्योग करने पर भी उसे सफलता नहीं मिली। यह देख एक बार फिर बादशाह ने स्वर्गवासी जसवन्तसिंहजी के बनावटी पुत्र मोहम्मदीराज को जोधपुर का राज्य सौंपने का इरादा किया । परन्तु वि० सं० १७४५ ( ई० सन् १६८८ ) में वह बीजापुर में प्लेग की बीमारी से मर गयो ।
इसके बाद बादशाह ने गुजरात के सूबेदार कारतलबखाँ को मारवाड़ का प्रबंध करने के लिये जाने की आज्ञा भेजी । परन्तु उसके गुजरात से खाना होते ही वहाँ की सेना में बलवे की सूरत हो गई, इसलिये उसे मार्ग से ही वापस लौट जाना पड़ा।
तब ये दोनों सरहिंद होते हुए मारवाड़ में लौट आए । इसके बाद दुर्जनसाल ने पुर
और मॉडल पर हमला किया । यहाँ पर इनायतखाँ और दीनदारखाँ (मॉडल के फ़ौजदार)
की सेनाओं से युद्ध होने पर दुर्जनसाल मारा गया । कर्नल टॉड के लेखानुसार राठोड़ों ने मालपुरे की सेना को नष्ट कर वहाँ से दंड के रुपये वसूल किए थे । (देखो भा० ५, पृ० २७८)। १. 'अजितोदय' (सर्ग १३, श्लो० २३) और 'राजरूपक' (पृ० १२५) में इस हाकिम
का नाम इनायतखाँ लिखा है, और उनमें यह भी लिखा है कि उसी समय पीठ में फोड़ा हो जाने से वह मर गया था। अतः इस कार्य में सफल न हो सका । 'बाँबे गजेटियर' में लिखा है कि ई० सन् १६८६ में इनायतखाँ के मरने की सूचना पाकर कारतलबखाँ वहाँ के झगड़े को दबाने के लिये गुजरात से जोधपुर को रवाना हुआ। (देखो भा० १, खंड १, पृ० २८८) परन्तु 'मासिरेआलमगीरी' में उसके मरने की सूचना का औरंगजेब के पास वि० सं० १७३६ की कार्तिक सुदी ३ (ई० सन् १६८२
की २३ अक्टोबर) को पहुँचना लिखा है । (देखो पृ० २२३)। 'हिस्ट्री ऑफ़ औरंगजेब' में लिखा है कि हि० सन् १०६६ (वि० सं० १७४४ ई. सन् १६८७ ) में जोधपुर का फौजदार मर गया । परन्तु उस समय दक्षिण से फ़ौज भेजना असंभव था । अतः यहाँ की फ़ौजदारी का भार भी गुजगत के सूबेदार को सौंप दिया गया । ( देखो भाग ३, पृ० ४२३. फुटनोट * ) उसी में यह भी लिखा है कि उसने अगले वर्ष राठोड़ों से यह समझौता करलिया कि यदि वे व्यापारियों के गमनागमन में बाधा न डालेंगे, तो उनके माल पर के लगान का चौथाई हिस्सा उन्हें दिया जायगा । (देखो भा० ५, पृ० २७३)।
२. मासिरेआलमगीरी, पृ० ३१८ ।
२८०
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com