________________
महाराजा अजितसिंहजी अन्त में जब उसने वहाँ पहुँच उस झगड़े को दबा दिया, तब बादशाह ने प्रसन्न होकर उसका नाम शुजाअतखाँ रख दिया और गुजरात के साथ ही मारवाड़ का प्रबंध भी उसे सौंप दिया । इसके बाद शुजाअतखाँ गुजरात से जोधपुर पहुँचा
और उसने काज़मबेग मोहम्मद अमीन को जोधपुर में अपना प्रतिनिधि नियत किया । मेड़ता ( राव इन्द्रसिंह के पुत्र ) मोहकमसिंह को सौंपा गया । सोजत और जैतारण पर सैयदों का अधिकार रहा । इस प्रकार मारवाड़ का प्रबंध कर वह फिर गुजरात को लौट गया।
यह देख मारवाड़ के सरदारों ने फिर से मार-काट शुरू कर दी । इसी समय इनायतखाँ का पुत्र मुहम्मदअली अपने कुटुम्ब को लेकर मेड़ते से दिल्ली को रवाना हुआ। यह बड़ा ही धूर्त था । अतः इसकी सूचना पाते ही चाँदावत ब्रूझारसिंह, सूरजमल
और जोधा हरनाथ ने उसका पीछा किया । मार्ग में युद्ध होने पर मुहम्मद तो अपने कुटुम्ब को छोड़ कर भाग खड़ा हुआ, और उसका साज-सामान राठोड़ों के हाथ लगा।
वि० सं० १७४६ (ई० सन् १६८९) में चाँपावत मुकुन्ददास और दुर्गादास आदि ने मिलकर जोधपुर के रक्षक काज़मबेग और अजमेर के सेनापति शफ़ीखाँ को तंग करना शुरू किया । इसकी सूचना पाते ही बादशाह ने उसकी शिथिलता के लिये बहुत कुछ उलाहना लिख भेजा । इस पर शफीखाँ ने और भी दृढ़ता के साथ राठोड़ों का पीछा शुरू किया।
१. बाँबगजेटियर, भा० १, खंड १, पृ० २८८ । २. अजितोदय, सर्ग १३, श्लो० २४-२८ । ३. अजितोदय, सर्ग १४, श्लो०१ और १६-३७, राजरूपक, पृ० १३३-१३४ और अजितग्रन्थ,
छन्द १५८४-१५८८ । 'राजरूपक' में इस घटना का वि० सं० १७४६ में होना लिखा है । 'अजितोदय' से ज्ञात होता है कि शुजाअतखाँ ने मेड़ते का प्रबन्ध भी इन्द्रसिंह के पुत्र मोहकमसिंह को सौंप दिया था। इसी से मुहम्मदअली वहाँ से दिल्ली को रवाना
हुआ था । ( देखो सर्ग १३, श्लो० २६)। इस मुहम्मदअली ने कोसाने के ठाकुर चाँदावत पृथ्वीसिंह को, दोहा के ठाकुर चाँदावत जैत सिंह को और मेड़तिया मोहकमसिंह को धोके में मारा था । (अजितोदय सर्ग १४, श्लो०३-१८)। ४. 'अजितग्रन्थ' में इस घटना का वि० सं० १७४७ में होना लिखा है । (देखो छन्द १६००
और १६०४-१६०६ )। ५. 'अजितग्रन्थ' में वि० सं० १७४७ ( ई० सन् १६६० ) में शुजाअतखाँ का गुजरात से
मारवाड़ में आना और बादशाह का अपने पदाधिकारियों द्वारा मारवाड़ में महाराज के
२८१
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com