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मारवाड़ का इतिहास
इसके बाद अगले वर्ष कुछ चाँपावत, दूंपावत और ऊदावत आदि शाखाओं के सरदारों ने महाराज को देखने और उनको प्रकट कर सरदारों के चित्त में और मी अधिक उत्साह बढ़ाने का संकल्प किया। इसी के अनुसार ये लोग खीची मुकुन्ददास के पास जाकर बालक महाराज के विषय में पूछताछ करने लगे। इसी समय बूंदी से आकर हाडा राव दुर्जनसालजी भी इनके साथ हो गए । यद्यपि पहले तो मुकुन्ददास ने इस विषय में अपनी अनभिज्ञता प्रकट कर उन सब को दुर्गादास के दक्षिण से लौट आने तक संतोष रखने की सलाह दी, तथापि अन्त में जब सरदारों का अत्यधिक आग्रह देखा, तब लाचार हो वि० सं० १७४४ की चैत्र सुदी १५ (ई० सन् १६८७ की १८ मार्च ) को बालक महाराज को लाकर सब के सामने उपस्थित कर दिया। उस समय महाराज की अवस्था लगभग ८ वर्ष की थी। फिर भी सब से पूर्व हाडा दुर्जनसालजी उनसे मिले, और फिर क्रमश: मारवाड़ के सरदारों ने नजर और निछावर करके महाराज का अभिनन्दन किया ।
इसके बाद महाराज अपने उपस्थित सरदारों के साथ आउवा, बगड़ी, रायपुर, बीलाड़ा, बलँदा, रीयाँ, आसोप, लवेरा, खींवसर, कोलू आदि स्थानों में होते हुए और वहाँ के सरदारों को साथ लेते हुए पौकरन पहुँचे ।
इस समय तक दुर्गादास को दक्षिण में रहते बहुत समय बीत चुका था । अतः उसे भी मारवाड़ के समाचार जानने की उत्कंठा हुई । परन्तु दक्षिण के मार्गों पर चारों ओर शाही सेना की चौकियाँ बैठी हुई थीं। इसलिये वह शाहजादे अकबर को
१. 'राजरूपक' में इनका १,००० सवारों के साथ आना लिखा है । (देखो पृ० १२१)। २. 'राजरूपक' में इस विषय में लिखा है:
बरस तयाँले चैत सुद, पूनम परम उजास । उक्त काव्य में श्रावण से नया वर्ष माना गया है। अतः इसके अनुसार यह घटना वि० सं० १७४४ के चैत्र में ही हुई थी। ( देखो पृ. १२२)।
परन्तु हमने जहाँ कहीं अन्यत्र 'राजरूपक' से तिथियाँ और संवत् उद्धृत किए हैं, वे उत्तरीय भारत में प्रचलित चैत्र शुक्ल १ से प्रारंभ होनेवाले संवतों में परिवर्तन करके ही किए हैं।
'अजित ग्रन्थ' में चैत्र सुदी १० को इनका प्रकट होना लिखा है (देखो छंद १४८२)। ३. 'अजित-ग्रन्थ' में इनका वि० सं० १७४३ में राठोड़ों के शरीक होना (देखो छंद १४४४)
और महाराज अजित के अपने सरदारों के साथ साँडेराव में पहुँचने पर उनसे मिलना लिखा है । (देखो छंद १४६३)।
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