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महाराजा अजितसिंहजी उसने राठोड़ों की सेना को पकड़ लिया। मारवाड़ के वीर भी शत्रु को आया देख मुड़कर उस पर टूट पड़े । घोर युद्ध के बाद घोड़े का पैर टूट जाने के कारण वीर अजबसिंह युद्ध-स्थल में मारा गया।
इसके बाद सरदारों ने चाँपावत धीरसिंह के पुत्र उदयसिंह को अपना सेनापति बनाया । इस पर वह भी सेना को सजाकर जालोर पहुँचा, और उक्त नगर को लूटकर माँडले, सरवाड़पुर और तोड़े को लूटता हुआ मारवाड़ में लौट आया। इसके बाद इसने जाकर नगर नामक गाँव को लूट लिया ।
वि० सं० १७३९ ( ई० सन् १६८२ ) में इधर ऊदावत जगरामसिंह ने जैतारण में जाकर मार-काट माई, और उधर भाद्राजन पर हमला करनेवाली यवन-वाहिनी को जोधा उदयभान ने और बालोतरे की तरफ आई हुई शाही सेना को बाला अखैराज आदि ने मार भगाया। इस प्रकार ऊदावत, |पावत, मेड़तिया आदि राठोड़ों ने और भाटी १. अजितोदय, सर्ग ११, श्लो० ३४-४० । उक्त काव्य में मेड़ते को लूटने की तिथि वि०
सं० १७३७ की कार्तिक बदी १४ ( ई० सन् १६८० की ११ अक्टोबर ) लिखी है ।
यथाः
संवच्छलभवाक्षिवारिधिशशांकांकोन्मितेन्दे तथा
प्यूर्जे कृष्णदले तु शम्भुदिवसे प्रातः समागम्य च । परन्तु इसमें एक वर्ष का अन्तर प्रतीत होता है । 'राजरूपक' में अजबसिंह का वि० सं० १७३८ की कार्तिक सुदी २ को युद्ध में मरना लिखा है । ( देखो पृ० ८५) ।
'अजितग्रन्थ' में अजबसिंह के मरने की तिथि वि० सं० १७३८ की कार्तिक सुदी १ ( ई० सन् १६८१ की १ नवम्बर ) लिखी है । ( देखो छन्द ७७६-७८०)। २. 'मासिरेआलमगीरी' से ज्ञात होता है कि वि० सं० १७३८ की फागुन सुदी ११ ( ई०
सन् १६८२ की ८ फ़रवरी) को बादशाह को ज्ञात हुआ कि राठोड़ मॉडलपुर पर धावा करके बहुत सा माल-असबाब लूट ले गए हैं । (देखो पृ० २१७ ।) (मेवाड़ का यह
परगना बादशाह के अधिकार में था)। 'राजरूपक' में फागुन सुदी ३ को मॉडल का लूटना और चैत्र बदी ८ को सोजत का घेरना लिखा है । ( देखो पृ० ८८)।
३. अजितोदय, सर्ग ११, श्लो० ४७-४८ । ४. अजितोदय, सर्ग ११, श्लो० ४६-५२ । 'राजरूपक' में इस घटना का कार्तिक बदी १२
को होना लिखा है । यह युद्ध एक मास तक चलता रहा था। ५. अजितोदय, सर्ग १२, श्लो० २-७ । ६. अजितोदय, सर्ग १२, श्लो. २६-३६ । 'राजरूपक' में इस घटना का समय भादों
सुदी १३ लिखा है।
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