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महाराजा अजितसिंहजी इसके बाद सावन सुदी १ ( ६ जुलाई ) को शाहआलम बहादुर ( मुहम्मद मुअज्जम ) भी, जो राठोड़ों को दबाने के लिये भेजा गया था, सोजत और जैतारण की
ओर से लौटकर अजमेर आ पहुँची । ___ भादों सुदी ३ ( ६ अगस्त ) को बादशाह को खाँजहाँ बहादुर की अर्जी से सूचना मिली कि शाहजादा अकबर इस समय दक्षिण में पाली के किले में ठहरा हुआ है और उसके पास २०० सवार और ८०० पैदल हैं । इन सब के खर्च का प्रबंध शंभाजी की ही तरफ़ से होता है । यह हाल जानकर बादशाह ने मुहम्मद आजम को शाह का ख़िताब देकर दक्षिण की ओर भेजों, और प्रथम आश्विन सुदी ६ (८ सितंबर) को स्वयं भी उधर कूच किया । साथ ही अजमेर का प्रबंध शाहजादे मुहम्मद अजीम को सौंपी । बादशाह के दक्षिण की ओर जाते ही सोनग आदि राठोड़-सरदारों ने और भी जोर-शोर से उपद्रव का झन्डा खड़ा किया, और लगभग तीन हजार सवार एकत्रित कर मेड़ता-प्रांत को विध्वस्त करना प्रारंभ किया । इस पर कार्तिक सुदी १४ ( १४ १. 'राजरूपक' में इसी वर्ष की आषाढ़ सुदी ६ को महाराज के सरदारों का जोधपुर पर चढ़ाई
कर युद्ध करना लिखा है । ( देखो पृ० ७६ )। २. 'मासिरेआलमगीरी' पृ० २०६ । 'अजित ग्रन्थ' में लिखा है कि उसी समय बादशाह ने
इन्द्रसिंह से नाराज़ होकर जोधपुर ज़ब्त कर लिया । परन्तु शाहआलम के कहने से नागोर उसी के पास रहने दिया ( देखो छंद ६३१-६३६ ) उसी में आगे लिखा है कि बादशाह ने इनायतखां, को जोधपुर का प्रबन्ध सौंपा । अतः शाहबुद्दीनखाँ, जो हाल ही में वहाँ
गया था, बीलाड़े चला गया । ( देखो छन्द ६४०-६४३ )। ३. यह किला रायगढ़ से २५ मील पर था। कहीं-कहीं अकबर का पादशाहपुर में ठहरना भी
लिखा मिलता है । यह पाली के किले से ६ मील पूर्व में था। ४. 'मासिरेआलमगीरी' पृ० २११ । ५. उस समय मारवाड़ के उत्तर में साँभर और डीडवाने में, ईशानकोण में मेड़ते में, पूर्व में
जैतारण, सोजत, पाली और गोडवाड़ में, पश्चिम में बालोतरा, पचपदरा और सिवाने में तथा दक्षिण में जालोर में बड़े-बड़े शाही थाने मुकर्रर किए गए थे। ( हिस्ट्री ऑफ औरङ्ग
ज़ेब, भा०५, पृ० २७५-२७६)। ६. 'मासिरेआलमगीरी' पृ० २१२ । 'अजित ग्रंथ' में लिखा है कि बादशाह ने इनायतखाँ के
बदले कासिमखाँ को जोधपुर भेजा, और असदखा को शाहआलम के पुत्र अज़ीम के
पास अजमेर में रक्खा । (देखो छन्द ६८४-६८६) । ७. 'राजरूपक' में इनका जोधपुर को घेरना, और बादशाह का घबराकर इनसे संधि करना लिखा
है । उक्त इतिहास में यह भी लिखा है कि इस अवसर पर अजितसिंहजी को सात हज़ारी
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