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मारवाड़ का इतिहास शंभाजी विचार में पड़ गए, तथापि अंत में कवि कलश के समझाने से उन्होंने इनको बड़े आदर-सत्कार के साथ अपने यहाँ रख लिया ।
इसकी सूचना पाने पर बादशाह को भय हुआ कि कहीं शाहजादा अकबर उधर भी इधर जैसा ही उपद्रव न खड़ा करदे । अतः उसने स्वयं दक्षिण की ओर जाने का इरादा किया । परन्तु मारवाड़ में राठोड़े और मेवाड़ में सीसोदिये उसको हैरान कर रहे थे। इसलिये अंत में उसने महाराना से संधि कर लेना ही उचित समझा । इसी के अनुसार बादशाह ने मोहम्मद आजम के द्वारा महाराना को संधि कर लेने को प्रस्तुत किया; और बातचीत तय हो जाने पर जजिया लेना बंद करके मेवाड़ का इलाका रानाजी को सौंप दिया । परन्तु उसके पुर, मांडल और बदनोर के परगने अपने ही अधिकार में रक्खे । इस संधि में एक शर्त यह भी थी कि जिस समय महाराज अजितसिंहजी युवा हो जायँ, उस समय बादशाह की तरफ़ से मारवाड़ का राज्य उनको सौंप दिया जायें ।
की तरफ चला । परन्तु जब उसे इस मार्ग से जाने में सफलता न हुई, तब वह अग्निकोण की ओर लौटकर बाँसवाड़े और दक्षिण मालवे से होता हुआ ज्येष्ठ बदी ८ ( १ मई ) के निकट अकबरपुर के पास से नर्मदा के उस पार हो गया, और इसी के १५वें रोज़ बुरहानपुर से कुछ फ़ासले पर तापती के किनारे जा पहुँचा । परन्तु यहाँ पर भी शाही अवरोध के मिलने से उसे पश्चिम की ओर मुड़कर खानदेश और बगलाने होते हुए चलना पड़ा ।
अन्त में वह रायगढ़ से शंभाजी के पास पहुँच गया । ( देखो भा० ३, पृ० ४१८)। १. 'अजितोदय' सर्ग ११, श्लो० २७-२६ । २. 'अजित-ग्रन्थ' में लिखा है कि सोनग ने भाटी वीरों को साथ लेकर आषाढ सुदी ६ (१४
जून ) को जोधपुर के निकट इनायतखाँ से भीषण संग्राम किया । इसके बाद इसने फलोदी
पहुँच उसे भी लूटा । ( देखो छंद ६४४-६५४) । ३. मासिरेआलमगीरी में रानाजी की तरफ़ से संधि का प्रस्ताव होना लिखा है । यह
संधि वि० सं० १७३८ वी आषाढ़ सुदी ६ ( ई० सन् १६८१ की १४ जून ) को राजसमन्द तालाब पर शाहज़ादे आज़म और राना जयसिंहजी के बीच हुई थी। ( देखो
पृ० २०८-२०६)। कहीं कहीं ७ के बदले १७ जमादिउस्सानी मानकर श्रावण बदी ३ ( २४ जून) को इस घटना का होना लिखा है।
४. एलफिस्टन्स हिस्ट्री ऑफ इंडिया, पृ० ६२७ ।
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