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मारवाड़ का इतिहास मोहकमसिंह आदि हिन्दु सरदारों को मेवाड़ के भिन्न-भिन्न परगनों पर अधिकार करने के लिये रवाना किया। साथ ही मँगसिर सुदि ८ (३० नवम्बर ) को वह स्वयं भी अजमेर से उदयपुर की तरफ़ चला । इस पर मोहम्मद अकबर, जो उस समय मेड़ते में था, दिवराई में आकर बादशाह से मिला । पौष बदी र (१६ दिसम्बर) को शाहजादा मोहम्मदआजम भी बंगाल से आकर बादशाह के साथ हो लिया । जब महाराना को यह समाचार मिला, तब वह उदयपुर छोड़कर पहाड़ों के आश्रय में चले गएँ । इस पर मारवाड़ के बहुत से राठोड़ भी उनके पास जा पहुँचे । यह देख बादशाह ने इधर तो हसनअली को रानाजी का पीछा करने की आज्ञा दी, और उधर उदयपुर में मन्दिरों को नष्ट-भ्रष्ट करने का प्रबंध किया । यद्यपि वीर सीसोदियों ने भी ऐसे समय आत्म-बलि देकर यवनों को रोकने की बहुत कुछ चेष्टा की, तथापि उनके विशाल समूह के आगे वे कृतकार्य न हो सके। ____ इस प्रकार मेवाड़ की दुर्दशा होते देख राठोड़ उत्तेजित हो उठे । दुर्गादास तथा सोनग ने और भी जोर-शोर से मारवाड़ में उपद्रव शुरू करने का प्रबंध किया । इसीके अनुसार ये लोग पहले जालोर पहुँचे । परन्तु इनके उत्पात से डरकर वहाँ के शासक फतेहखाँ ने इन्हें कुछ दे-दिलाकर संधि कर ली । इस पर ये लोग वहाँ से बीलाड़े की
१. 'मनासिरेआलमगीरी' में इन्हीं में इन्द्रसिंह का भी नाम है । ( देखो पृ० १८२ )। २. मासिरेआलमगीरी, पृ० १८२ । ३. मासिरेआलमगीरी, पृ० १८६ । ४. मासिरेआलमगीरी, पृ० १८६ । ५. 'तवारीखेपालनपुर' में लिखा है कि बादशाह ने वि० सं० १७३६ की फागुन सुदी १४
को गुजरात के सूबेदार की सिफ़ारिश से जालोर, साँचोर और भीनमाल के प्रांत फतेहखाँ को दे दिए थे। (देखो पृ० १४६) ये प्रांत पहले इसके पूर्वजों के अधिकार में भी रह चुके थे । परन्तु इस समय केवल पालनपुर पर ही इसका अधिकार था । यह प्रबंध
बादशाह ने राठोड़ों को दबाने के लिये ही किया था। टॉड ने अपने राजस्थान के इतिहास में लिखा है कि जिस समय बादशाह उदयपुर पर हमला करने में लगा था, उसी समय उसे दुर्गादास के जालोर पर आक्रमण करने की सूचना मिली । इस पर वह अपनी उदयपुर की विजय को छोड़ कर अजमेर लौट आया, और उसने मुकर्रबखाँ को बिहारियों की मदद पर भेजा । परन्तु उसके वहाँ पहुँचने के पूर्व ही दुर्गादास दंड के रुपये लेकर जोधपुर की तरफ चला गया था। (देखो भाग २, पृ० ६६६)।
'राजरूपक' में भी बादशाह का मुकर्रब को जालोर की रक्षार्थ भेजना लिखा है । परन्तु 'मनासिरेग्रालमगीरी' में लिखा है कि बादशाह ने उदयपुर से अजमेर की तरफ लौटते समय मुकर्रमखाँ को रणथंभोर ( या बदनोर ) की तरफ भेजा था ।(पृ० १६०)।
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