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मारवाड़ का इतिहास
इसके बाद राठोड़ सरदार रानाजी के साथ मिलकर सोजत और जैतारण के प्रांतों में मार-काट करने और वहाँ की रबी की फसल को लूटने लगे। यह देख वहाँ के शाही हाकिमों ने सारा हाल बादशाह को लिख भेजा । इस पर उसने वि० सं० १७३७ की जेष्ठ बदी ४ ( ६ मई ) को हामिदखाँ को सोजत और जैतारण में उपद्रव करने वाले राठोड़ों को दबाने के लिये रवाना किया । परन्तु जब उसे सफलता नहीं मिली, तब बादशाह ने शाहजादे मोहम्मदआज़म को तो चित्तौड़ की रक्षा के लिये मेजा, और शाहजादे अकबर को सोजत और जैतारण पहुँच राठोड़ों को दंड देने की आज्ञा दी। इसी के अनुसार वह ( वि० सं० १७३७ की आषाढ़ सुदी र ई० सन् १६८० की २५ जून को) चित्तौड़ से रवाना होकर बरकी-घाटी के मार्ग से मारवाड़ को चला। उसकी सेना के अग्र-भाग का मार्ग साफ़ करने के लिये तहव्वरखाँ नियत किया गया । यह देख राठोड़ों ने मार्ग में स्थान-स्थान पर आक्रमण कर मुगल-सेना के बढ़ने में बाधा डालनी शुरू की । ब्यावर और मेड़ते के पास तो और भी जमकर सामना किया। परन्तु अंत में सावन सुदी ३ ( १८ जुलाई) को शाहजादे अकबर ने दल-बल-सहित सोजत पहुँच उसे अपना सदर मुकाम बनाया ।
इस पर राठोड़ अपने को भिन्न-भिन्न दलों में बाँटकर देश में चारों तरफ़ मार-काट करने और देश को उजाड़ने लगे । ये लोग जहाँ कहीं मौका पाते, मुगलों की चौकियों पर टूटकर उन्हें नष्ट कर देते या मार्ग में उनकी रसद को लूटकर उन्हें तंग करते थे । इससे मुगलों को हर समय अपनी चौकियों आदि की रक्षा के लिये चौकन्ना या इधर उधर घूमते रहना पड़ता था । यदि राठोड़ों का एक दल मारवाड़ के दक्षिणी भागजालोर और सिवाने पर अचानक आक्रमण करता था, तो दूसरा मारवाड़ के पूर्वी भागगोड़वाड़ पर टूट पड़ता था । इसी प्रकार तीसरा दल देश के उत्तरी भाग में स्थित नागौर को लूटता, तो चौथा तत्काल ईशान-कोण के प्रदेश डीडवाना और साँभर में मार-काट मचा देता था। इससे मुगल सेना बहुत हैरान हो गैई ।
१. 'राजरूपक' से ज्ञात होता है कि राना राजसिंहजी ने बादशाह से बदला लेने के लिये
अपने पुत्र राजकुमार भीम को सेना देकर राठोड़ों के साथ कर दिया था। २. मासिरेआलमगीरी, पृ० १६३ । ३. मासिरेआलमगीरी, पृ० १६४ । अजितोदय, सर्ग १०, श्लो० २६-२७ । ४. 'हिस्ट्री ऑफ़ औरंगज़ेब', भाग ३, पृ० ३६२-३६३ ।
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