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मारवाड़ का इतिहास की आज्ञा मिली । इसी के १८वें रोज़ शाहजादे कामबख्श का बख़्शी मोहम्मद नईम भी अकबर की सहायता के लिये भेज दिया गया । इस पर राठोड़-सरदार फलोदी की तरफ़ चले गए, और वहाँ पर युद्ध की सामग्री आदि का संग्रह कर फिर गोड़वाड़ की तरफ़ लौट आएं। इसके बाद एक बार फिर ये मैदान के युद्धों में अपने सवारों द्वारा और पहाड़ी लड़ाइयों में पैदल सैनिकों द्वारा समय-समय पर शाही सेना से सम्मुख रण में लोहा लेकर अथवा उसकी रसद आदि को लूटकर या उस पर नैश आक्रमण कर यथासंभव उसे तंग करने लगे।
इधर यह सब हो रहा था और उधर दुर्गादास ने मारवाड़ के उद्धार के लिये पहले गुजरात की तरफ़ जाकर उपद्रव करने का इरादा किया। परन्तु अंत में एक नवीन युक्ति सोच निकाली । उसी के अनुसार इसने शाहजादे मुहम्मद मोअज्जम को अपने पिता का पदानुसरण कर राठोड़ों की सहायता से बादशाह बन जाने के विषय में पत्र लिखे। पर जब इसमें सफलता की आशा न देखी, तब इसी विषय की बातचीत शाहजादे मोहम्मद अकबर से शुरू की । इस पर उक्त शाहजादे ने अपने अधीनस्थ सेनापति तहव्वरखाँ से सलाह कर इस बात को अंगीकार कर लिया, और अपने बादशाह हो जाने पर महाराजा अजितसिंहजी को उनका राज्य लौटा देने की प्रतिज्ञा की। की आज्ञा भेजी थी । अतः वह दूसरे ही दिन नाडोल से देसूरी की तरफ चला, और वहाँ पहुँचकर मँगसिर सुदी ११ ( २२ नवम्बर ) को उसने तहव्वरखाँ को मीलवाड़े की तरफ रवाना किया । यद्यपि मार्ग में राजपूत वीरों ने सम्मुख रण में प्रवृत्त हो भीषण मार-काट मचाई, तथापि अपनी संख्याधिकता के कारण अंत में किसी तरह मुगल-सेना कुंभलमेर से ८ मील उत्तर के झीलवाड़ा ग्राम में पहुँच कर ठहर गई । (देखो भाग ३, पृ० ३६६-३६७)।
१. मासिरेआलमगीरी, पृ० १६५ ।। २. अजितोदय, सर्ग १० श्लो० ५२-५३ ।
(बादशाह राठोड़ों से इतना क्रुद्ध हो गया था कि वह मारवाड़ को उजाड़ देने तक को उद्यत था । उसने अपने अमीरों को आज्ञा देदी थी कि जोधपुर और उसके आस-पास के प्रदेशों को बर्बाद कर दो, शहर और गाँवों को जला दो, फलवाले दरख्तों को काट दो, स्त्री-पुरुषों को पकड़कर गुलाम बना डालो और सारी रसद को लूट लो।)। ३. 'अजितोदय' और 'राजरूपक' में अकबर की तरफ से इस प्रस्ताव का किया जाना लिखा है । ( देखो सर्ग ११, श्लो० ४-६)।
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