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मारवाड़ का इतिहास रवाना की । इस सेना ने जोधपुर पहुँच दुबारा वहाँ पर कब्जा कर लिया । इन्हीं दिनों इस गड़बड़ से मौका पाकर पड़िहारों ने भी फिर से अपनी पुरानी राजधानी मंडोर पर अधिकार कर लिया था। ___ इसी बीच मेड़तिया राजसिंह द्वारा मेड़ते के छीने जाने की सूचना पाकर अजमेर के फौजदार तहव्वरखाँ ने उस पर फिर अधिकार करने का विचार किया, और इसी के अनुसार वह अपनी सेना को लेकर पुष्कर पहुँचा । इतने में राजसिंह भी अपनी राठोड़वाहिनी को लेकर उसके मुकाबले को आ गया। तीन दिन तक दोनों तरफ से घोर युद्ध होता रहा । अंत में शाही सेना को नष्ट करता हुआ राजसिंह भी अपने भाइयों के साथ इसी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ । यह घटना भादों बदी २ (१९ अगस्त ) की है। __ भादों बदी १३ ( २३ अगस्त ) को जब बादशाह को इसकी सूचना मिली, तब भादों सुदी ८ (३ सितम्बर) को वह स्वयं अजमेर की तरफ रवाना हुआ, और उसी दिन उसने पालम के मुक़ाम से अपने शाहजादे मोहम्मद अकबर को आगे चलकर अजमेर पहुँचने की आज्ञा दी। __आसोज (काँर ) सुदी १ ( २५ सितम्बर ) को जब बादशाह अजमेर पहुँच गया, तब भाटी रामसिंह ने खाँजहाँ बहादुर को पत्र लिखकर एक बार फिर बादशाह को समझाने और महाराज अजितसिंहजी को उनका पैतृक राज्य दिलवा देने की प्रार्थना की । परन्तु किसी प्रकार इसकी सूचना राव इन्द्रसिंह को मिल गई। अतः उसके आदमियों ने अचानक जोधपुर पहुँच रामसिंह के मकान को घेर लिया। इस पर वह वीर भी तलवार लेकर बाहर निकल आया, और सम्मुख रण में लड़ता हुआ शत्रुओं के हाथों मारा गया।
१. मासिरेआलमगीरी, पृ० १७६ ।
(हिस्ट्री ऑफ़ औरंगजेब, भाग ३, पृ० ३७६)। २. मासिरेआलमगीरी, पृ० १७९-१८० और 'अजितोदय', सर्ग ८, श्लो० ३५-७० । ___'राजरूपक' में इस युद्ध का भादों सुदी ११ को होना लिखा है । (देखो पृ० १८)। ३. मासिरेआलमगीरी, पृ० १८० । ४. मासिरेआलमीगीरी, पृ० १८१ । ५. यह घटना 'अजितोदय' से लिखी गई है (सर्ग ६, श्लो० १४-२२)। 'अजित-ग्रंथ' से भी इसकी पुष्टि होती है । ( देखो, छंद ३१४-३१६) 'मनासिरे-पालमगीरी' में सावन
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