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मारवाड़ का इतिहास
२६. महाराजा अजितसिंहजी
जिस समय जमरूद में महाराजा जसवंतसिंहजी की मृत्यु हुई, उस समय उनकी नरूकी और जादमनं (वंश की ) दो रानियाँ गर्भवती थीं । इसीसे महाराज के साथ के सरदारों ने इन्हें सती होने से रोक लिया । इसके बाद महाराज के द्वादशाह का कार्य समाप्त हो जाने पर ये लोग इन्हें साथ लेकर, वि० सं० १७३५ की माघ सुदि १३ (ई० स० १६७६ की १४ जनवरी ) को, लाहौर की तरफ़ रवाना हो गए।
इनके अटक नदी के पास पहुँचने पर, पहले तो वहाँ के शाही हाकिम ने इन्हें, बादशाही आज्ञा या काबुल के सूबेदार का परवाना न होने के कारण, रोकने की चेष्टा की। परन्तु जब ये लोग मरने-मारने और नावों पर जबरदस्ती अधिकार करने को उद्यत हो गए, तब अंत में उसने इन्हें अटक पार करने की आज्ञा दे दी। इसके बाद इनके लाहौर पहुँचने पर वि० सं० १७३५ की चैत बदी ४ ( ई० सन् १६७६ की १९ फरवरी ) बुधवार को दोनों रानियों के गर्भ से दो पुत्र उत्पन्न हुए । इनमें से बड़े राजकुमार का नाम अजितसिंह और छोटे का दलयंभन रक्खा गया।
१. बालकृष्ण दीक्षित-रचित 'अजित-चरित्र' में लिखा है:
अतःपरं यादवराजपुत्र्या जन्मान्तरीयं कथयाम्युदन्तम् ; अजीतसिंहो जनितो ययात्र कार्ये गुणाः कारणतो भवन्ति ।
(सर्ग ६, श्लोक १) २. 'सैहरुल- मुताख़रीन' में राठोड़-सरदारों का 'मीरबहर' को आहत और परास्तकर अटक
पार होना लिखा है । (देखो जिल्द १, पृ० ३४३)। 'मुंतखिबुल्नुबाब' से भी इस बात की पुष्टि होती है । ( भा॰ २, पृ० २५६) ।
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