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मारवाड़ का इतिहास
इसी बीच महाराजा जसवंतसिंहजी की मृत्यु का समाचार पाकर उनके सरदार भी अपने-अपने स्थानों से आकर जोधपुर में एकत्रित होने और खाँजहाँ बहादुर से सम्मुख रण में लोहा लेने का विचार करने लगे । परन्तु अन्त में भाटी रघुनाथसिंह ने महाराजा के मंत्री कायस्थ केसरीम्हि से सलाहकर रानियों के पुत्र उत्पन्न होने की सूचना मिलने और स्वर्गवासी महाराज के साथ के दल के मारवाड़ में पहुँचने तक युद्ध करने का विचार रोक दिया, तथा भाटी रामसिंह को कुछ सरदारों के साथ खाँजहाँ बहादुर से संधि करने के लिये रवाना किया । भाटी रामसिंह ने उसके पास पहुँच मारवाड़ का अधिकार उसे सौंप देने का वादा कर लिया । परन्तु इसके साथ ही यह शर्त तय की कि यदि महाराज की गर्भवती रानियों में से किसी के गर्भ से भी पुत्र उत्पन्न होगा, तो बादशाह की तरफ़ से मारवाड़ का राज्य उसे लौटा दिया जायगा ।
___ इसके बाद खाँजहाँ बहादुर ने मेड़ते पहुँच उसे शाही अधिकार में ले लिया। वहाँ से चलकर जिस समय वह पीपाड़ पहुँचा, उसी समय लाहौर में महाराजकुमारों के जन्म होने की सूचना भी सरदारों के पास आपहुँची । यहाँ से आगे बढ़कर खाँजहाँ ने जोधपुर पर अधिकार करने का इरादा किया, और वह नगर के बाहर पहुँच शेखावतजी के तालाब पर ठहर गया । इसकी सूचना पाते ही चाँपावत वीर सोनगे ने उसको रोकने का इरादा किया । परन्तु भाटी रघुनाथसिंह आदि ने समय की गति का ध्यान दिलाकर उसे ऐसे समय युद्ध छेड़ने से रोक लिया । इस पर खाँजहाँ ने जोधपुर का प्रबन्ध ताहिरखा को सौंप सिवाना, सोजत, जैतारण आदि के प्रांतों पर भी यवन-शासक नियत कर दिया । इस प्रकार मारवाड़ पर यवनों का अधिकार हो जाने से यहाँ के मन्दिर और मूर्तियाँ नष्ट की जाने लगी । परन्तु बालक महाराजकुमारों और उनके मुख्यमुख्य सरदारों के मारवाड़ से बाहर होने के कारण यहाँ उपस्थित राठोड़-वीरों ने उपद्रव करना उचित न समझा ।
१. अजितोदय में इसका नाम बहादुरखाँ लिखा है । ( देखो सर्ग ५, श्लो० ४४)। २. यह लवेरे का ठाकुर था। ३. अजितोदय, सर्ग ५, श्लो० ४५-५४ । ४. अजितोदय, सर्ग ५, श्लो० ५५-५६ । ५. यह चाँपावत विठ्ठलदास का पुत्र था । ६. अजितोदय, सर्ग ६, श्लो० २७-२६ । ७. अजितोदय, सर्ग ६, श्लो० ४६, ५१-५३ ।
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