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महाराजा अजितसिंहजी
बादशाह भी वि० सं० १७३५ की चैत्र बदी ४ ( ई० सन् १६७६ की १६ फरवरी ) को अजमेर पहुँच उपर्युक्त कार्यों की गति-विधि देख रहा था । परन्तु चैत्र वदी ११ ( २६ फ़रवरी ) को जब उसे स्वर्गवासी महाराज के वकील द्वारा महाराजकुमारों के जन्म की सूचना मिली, तब उसने अपना पथ निष्कंटक करने लिये दिल्ली. लौटने का विचार किया। इसी के अनुसार उधर तो वि० सं० १७३६ की चैत्र सुदी १ (१० मार्च ) को उसने सैयद अब्दुल्लाखाँ को स्वर्गवासी महाराज के सामान और द्रव्य
आदि पर अधिकार करने के लिये सिवाने के दुर्ग पर भेजी, और इधर स्वर्गवासी महाराजा के माल-असबाब पर अधिकार करने तथा मारवाड़-राज्य की आय का हिसाब तैयार करने का प्रबन्ध कर स्वयं दोनों नवजात कुमारों को छीन लेने के लिये दिल्ली को चला।
यद्यपि बादशाह औरङ्गजेब मजहबी मामलों में कट्टर होने के कारण आरंभ से ही हिंदुओं से मन-ही-मन बड़ा द्वेष रखता था, तथापि महाराजा जसवंतसिंहजी के जीते-जी उसे खुलकर प्रकट नहीं कर सकता था । अतः इस समय उनका स्वर्गवास हो जाने से वह निश्शंक हो गया, और दिल्ली पहुँचते ही वि० सं० १७३६ की वैशाख सुदी २ ( ई० सन् १६७६ की २ अप्रेल=हि० सन्० १०६० की १ रबी-उल-अव्वल ) को उसने हिन्दुओं से जज़ियाँ वसूल करने की आज्ञा प्रचारित करदी ।
जब मारवाड़ में पूरी तौरसे बादशाही प्रबन्ध हो गया, तब खाँजहाँ बहादुर भी मन्दिरों के तोड़ने से एकत्रित हुई मूर्तियों को गाड़ियों में भरवा कर द्वितीय ज्येष्ठ बदी ११
१. मासिरेआलमगीरो, पृ० १७२-१७४ २. 'अजितोदय में बहादुरखाँ (खाँजहाँ ) के द्वारा कोचकबेग़ का सिवाने भेजा जाना लिखा
है । (देखो सर्ग ६, श्लो० ५१) परन्तु यदुनाथ सरकार की लिर्खा 'हिस्ट्री ऑफ़ औरंगजेब' से ज्ञात होता है कि चैत्र बदी १४ (१ मार्च) को पहले-पहल खिदमत गुज़ारखाँ ही सिवाने के किले और ख़ज़ाने पर अधिकार करने के लिये भेजा गया था। परन्तु जब वहाँ का खज़ाना उसके हाथ न लगा, तब दूसरा सेनापति (सैयद अब्दुल्लाखाँ) वहाँ के लिये नियत किया गया, और उसको अाज्ञा दी गई कि वहाँ की पृथ्वी तक को खोदकर माल-असबाब का पता लगावे । (देखो भा० ३, पृ० ३७०-३७१)।
३. मनासिरेआलमगीरी, पृ० १७४। यह मज़हबी कर था, जो मुसलमान बादशाह मुसल
मानेतर धर्मवालों से लिया करते थे । परन्तु अकबर ने इस प्रथा को अपने राज्य के लिये हानिकारक समझ बंद कर दिया था ।
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