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२४. राजा गजसिंहजी
यह सवाई राजा शूरसिंहजी के ज्येष्ठ पुत्र थे । इनका जन्म वि० सं० १६५२ की कार्तिक सुदी = ( ई० स० १५६५ की ३० अक्टोबर) को हुआ था । यह भी अपने पिता के समान ही वीर और बुद्धिमान थे । इन्होंने सवाई राजा शूर सिंहजी के जीवन काल में ही अनेक युद्धों में सफलता पूर्वक भाग लिया था, और उन्होंने भी इनकी योग्यता से प्रसन्न होकर इन्हें अपना युवराज नियत कर लिया था । इसीसे उनकी अनुपस्थिति में मारवाड़ का सारा प्रबंध इन्हीं की देख भाल में होता था ।
राजा गजसिंहजी
वि० सं० १६७६ ( ई० सन् १६१९ ) में जैसे ही इन्हें सवाई राजा शूरसिंहजी के मेहकर में बीमार होने की सूचना मिली, वैसे ही यह जोधपुर का प्रबंध अपने विश्वासपात्र सरदारों को सौंप तत्काल मेहकर की तरफ रवाना हो गए । पिता की मृत्यु के बाद इसी वर्ष की आसोज (कार) सुदी १० ( ई० सन् १६१२ की अक्टोबर ) को बुरहानपुर में इनका राज्याभिषेक हुआ । उस समय खाँनखाँनान् के पुत्र दौराबख़ाँ ने बादशाह की तरफ़ से इनकी कमर में तलवार बाँधी । बादशाह ने भी इनकी योग्यता देख कर इन्हें तीन हज़ारी जात और दो हज़ार सवारों का मनसब, झंडा और राजा का ख़िताब दिया ।
१. ‘मप्रासिरुल उमरा' के लेखानुसार जहाँगीर के राज्य के दशवें वर्ष ( वि० सं० १६७२; ई० स० १६१५ ) से ही यह बादशाही कार्यों में भाग लेने लगे थे । ( देखो भा० २, पृ० २२४) ।
२. 'गुणभाषाचित्र, पृ० ६, दोहा ४ ।
३. ख्यातों में लिखा है कि जहाँगीर ने, राजा शूरसिंहजी के मरने पर, गजसिंहजी को बुरहान पुर जाने के लिये लिखा था । उसी के अनुसार यह वहां पहुँच कर गद्दी पर बैठे । ख्यातों में इनका कार सुदि ८ को गद्दी पर बैठना लिखा है ।
४. 'तुजुक जहांगीरी', पृ० २८० । वहीं पर यह भी लिखा है कि इसी समय इनके छोटे भाई सबलसिंहजी को ५०० जात और २५० सवारों का मनसब ( और फलोदी का प्रांत जागीर में ) दिया गया था ।
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