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मारवाड़ का इतिहास ने भी इन्हें फलोदी का प्रांत ( मय पौकरन के किले के ) लौटा देने का वादा कर लिया । इसलिये महाराज ने जोधपुर पहुँचे ( रीयाँ के ) मेड़तिया गोपालदास, ( पाली के ) चांपावत विट्ठलदास और ( राजसिंह के पुत्र प्रासोप के ) नाहरखाँ को सेना देकर सबलसिंह के साथ कर दिया । इन लोगों ने शीघ्र ही फलोदी विजय कर वि० सं० १७०७ की कार्तिक वदि ६ ( ई० स० १६५० की ५ अक्टोबर ) को पौकरण के किले पर अधिकार कर लिया। इसके बाद यह आगे बढ़ जयसलमेर पर जा पहुँचे । यह देख रामचन्द्र भाग गया और जयसलमेर पर सबलसिंह का अधिकार हो गया।
वि० सं० १७१० (ई० स० १६५३ ) में महाराज का मनसब ६,००० जात और ५,००० सवार दुअस्पा-सेअस्पा का कर दिया गया ।
इसके बाद यह शाहजादे दाराशिकोह के साथ कंधार विजय के लिये रवाना हुएँ । परंतु इस यात्रा में शाही सेना को सफलता नहीं मिली ।
वि० सं० १७१२ (ई० स० १६५५ ) में इनका मनसब ६,००० जात और ६,००० सवार ( इनमें ५,००० सवार दुअस्पा-सेअस्पा थे) का हो गया और साथ
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१. राव चन्द्रसेनजी ने यह प्रांत १,००,००० फदियों (करीब १२,५०० रुपयों) के बदले
में जयसलमेर रावनजी को सौंप दिया था। २. ख्यातों के अनुसार यह वि० सं० १७०७ की आषाढ़ वदि ३ (ई० सन् १६५० की
६ जून) को जोधपुर पहुंचे थे। ३. यह शाहजहाँ के २६वें राज्यवर्ष की घटना है; जो वि० सं० १७०६ की द्वितीय वैशाख सुदि ३ (ई० सन् १६५२ की ३० अप्रैल) को प्रारंभ हुआ था।
मासिरुलउमरा, भा० ३, पृ० ६०० । ख्यातों से ज्ञात होता है कि इसके साथ ही इन्हें (अजमेर सूबेका) मलारना प्रांत जागीर में मिला था। ४. वि० सं० १७०५ (ई. सन् १६४६ की रवरी) में कंधार पर ईरानियों ने अधिकार कर लिया था।
___ऑक्सफोर्ड हिस्ट्री ऑफ इंडिया, पृ० ४०२ । ५. ऑक्सफोर्ड हिस्ट्री ऑफ इंडिया, पृ० ४०३ । इसके पहले दो बार औरंगजेब भी कंधार-विजय में असफल हो चुका था ।
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