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मारवाड़ का इतिहास
वि० सं० १७१६ की मँगसिर सुदि ७ ( ई० सन् १६५६ की १० नवम्बर ) को इन्हें दुबारा "महाराजा" का खिताब मिला ।
पहले लिखा जा चुका है कि औरंगजेब ने महाराज को गुजरात की सूबेदारी पर भेजते समय इनके महाराजकुमार को अपने पास बुलवाया था। उसी के अनुसार पृथ्वीसिंहजी ने सोरों के मुकाम पर पहुँचकर बादशाह को दो हाथी भेट किए । बादशाह ने भी माघ सुदि १४ (ई० सन् १६६० की १६ जनवरी) को खिलअत, हीरों की धुगधुगी और मोतियों का गुच्छा देकर उनका सत्कार किया। इसके कुछ दिन बाद उन्होंने फिर दो हाथी बादशाह को भेट किए । बादशाह ने भी उन्हें फिर एक हीरे की धुगधुगी देकर अपनी प्रसन्नता प्रकट की।
इसके बाद बादशाह ने अपने तीसरे राज्यवर्ष के प्रारंभ की खुशी में (वि० सं १७१७ की प्रथम ज्येष्ठ सुदि १० ई० सन् १६६० की 2 मई को) महाराज के लिये एक खिलअत भेजों । इस पर महाराज ने भी वि० सं० १७१७ की सावन वदि ४ ( ई० सन् १६६० की १५ जुलाई) को कुछ जवाहिरात, जेवर और कच्छी
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१. आलमगीरनामे में ५ वीं रवीउल अव्वल लिखा है (देखो पृ० ४४६ ) । परंतु मासिरे
आलमगीरी में ५ वीं के बदले ८वीं रखीउल अव्वल लिखा है । उसके अनुसार उमदिन मँगसिर सुदि १० (१३ नवम्बर ) आती है ( देखो पृ० २८)। २. बादशाह औरंगजेब के समय का महाराज के नाम का एक फरमान मिला है। उसने प्रकट
होता है कि उस समय महाराज जसवंतसिंहजी गुजरात के प्रबन्ध करने में लगे थे और
राजकुमार पचीसिंहजी बादशाह के पास थे। यह फ़रमान औरंगजेब के प्रथम राज्यवर्ष की २५ जमादिउल अव्वल का है । यद्यपि औरंगजेब वि० सं० १७१५ की श्रावण सुदि १ ( ई० स० १६५८ की २१ जुलाई ) को बादशाह बन गया था, तथापि गद्दीनशीनी का उत्सव वि० सं० १७१६ की आषाढ वदि ११ (ई. स. १६५६ की ५ जून ) को मनाया गया था। यदि उसी दिन से उसके राज्य वर्ष का प्रारम्भ माना जाय तो उपर्युक्त फरमान की तिथि वि० सं० १७१६ की फागुन वदि ११ ( ई० स० १६६० की २८ जनवरी) आयगी।
इतिहास से भी यही ठीक प्रतीत होता है । उसके बादशाह बनने की तिथि से राज्य वर्ष का प्रारम्भ मानने से इस फरमान की तिथि वि० सं० १७१५ की फागुन वदि १२ ( ई० स० १६५६ की ८ फरवरी) होगी। परन्तु उस समय तक महाराजा जसवंतसिंहजी का गुजरात जाना सिद्ध नहीं होता।
३. आलमगीरनामा, पृ० ४५६ और ४६२ । ४. आलमगीरनामा, पृ० ४८५ ।
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