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महाराजा जसवंतसिंहजी (प्रथम) घोड़े बादशाह की भेट के लिये भेजे' । इसके बाद मँगसिर वदि २ ( ८ नवम्बर ) को बादशाह ने फिर इनके लिये खिलअत और खासी तलवार उपहार में भेज कर इनका सत्कार किया और फिर महाराजकुमार पृथ्वीसिंहजी को खिलअत देकर जोधपुर जाने के लिये बिदा किया। ____ मँगसिर सुदि १ ( २३ नवम्बर ) को महाराज के लिये फिर एक खिलअत भेजा गर्यो । इसी अवसर पर महाराज के भेजे हुए कुछ जड़ाऊ जेवर और जवाहिरात आदि बादशाह के भेट किए गए ।
इन्हीं दिनों शिवाजी ने औरंगाबाद के आसपास बड़ा उपद्रव खड़ा कर रक्खा था । यद्यपि शाइस्ताखाँ ने उनको दबाने की बहुत कुछ कोशिश की, तथापि उसे इसमें सफलता नहीं हुई । इस पर पौष सुदि ६ (२७ दिसम्बर ) को बादशाह ने महाराज को लिखा कि वह अपनी सेना लेकर गुजरात से दक्षिण में पहुँचें और शिवाजी के विरुद्ध अमीरुल उमरा ( शाइस्ताखाँ) की सहायता करें । इसी के अनुसार महाराज जूनागढ़ के फौजदार कुतुबखाँ को अपना प्रतिनिधि ( नायब ) नियत कर गुजरात से दक्षिण की तरफ़ रवाना हो गएं ।
१. आलमगीरनामा पृ० ५६८। २. आलमगीरनामा, पृ० ५६२ । ३. आलमगीरनामा, पृ० ५६५ । ४. आलमगीरनामा, पृ० ६३४ । ५. आलमगीरनामा, पृ० ६३६ । ६. मुन्तखिवुल्लुबाब, भा॰ २, पृ० १२६ और आलमगीरनामा, पृ० ६४७ । ७. महाराज के दक्षिण में जाकर शिवाजी के साथ युद्रों में प्रवृत्त रहने के कारण वि० सं०
१७१६ की भादों बदी ३ (ई० स० १६६२ की २३ जुलाई ) को गुजरात की सूबेदारी महाबतखा को सौंप दी गई (मासिरे आलमगीरी, पृ० ४१) । ख्यातों में लिखा है कि इसकी एवज में महाराज को हाँसी-हिसार का सूबा मिला था। परंतु फ़ारसी तवारीखों
में इसका उल्लेख नहीं है। बाँवे गजेटियर में इनका ई० स० १६५६ (वि० सं० १७१६ ) से १६६२ (वि० सं० १५१६) तक गुजरात के सूवे पर रहना और इसी वर्ष कुतुबुद्दीन को वहां पर अपना प्रतिनिधि नियत कर मुअज्जम के पास दक्षिण में जाना, तथा बाद में महावतखाँ को गुजरात का सूबा मिलना लिखा है ( देखो भा० १, खंड १, पृ० २८३)।
ख्यातों में इनका वि० सं० १७१७ की मँगसिर सुदि ५ तक गुजरात में रहना, माघ वदि ६ को औरंगाबाद पहुंचना और चैत्र वदि ३ को पूने को रवाना होना लिखा है।
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