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महाराजा जसवंतसिंहजी
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प्रथम ) खासा खिलप्रत, तलवार, जड़ाऊ जमधर, मोतियों की लड़ी, अपने खासे तबेले के सोने के साज़वाले दो घोड़े, चाँदी की अम्बारी और जरी की भूलवाला १ हाथी देकर उन पर अपना विश्वास और प्रेम प्रकट किया । इसके बाद कार्त्तिक सुदि १० (२७ अक्टोबर ) को महाराज और शाहजादे के लिये फिर खिलते भेजे गए । अभी ये लोग लाहौर भी नहीं पहुँचे थे कि इतने में ही शाह अब्बास की मृत्यु का समाचार मिल गया । इससे बादशाह ने इन्हें अपने, पौष वदि १२ ( १२ दिसम्बर ) के, पत्र में लाहौर में ही ठहर जाने का लिख भेजा । माघ वदि ११ ( ई० स० १६६७ की १० जनवरी) को इनके और शाहजादे के लिये लाहौर में सरदी के खिलप्रत भेजे गये । इसके बाद इनके लाहौर से लौट आने पर बादशाह ने वि० सं० १७२३ की चैत्र वदि १२ ( ११ मार्च ) को महाराज को खासा खिलअत देकर इनकी अभ्यर्थना की ।
वि० सं० १७२४ की चैत्र सुदि ८ ( २३ मार्च) को बादशाह ने शाहजादे को दक्षिण की सूबेदारी पर रवाना किया और महाराज को खिलप्रत, जड़ाऊ मुअज्जम कमरबंदवाली तलवार और दो घोड़े, जिनमें एक सुनहरी साज़ का था, उपहार में देकर उसके साथ करदियाँ । वि० सं० १७२४ की ज्येष्ठ वदि ११' ( ई० स० १६६७ की
१. प्रलामगीरनामा, पृ० ६७५-६७६ ।
२. आलमगीरनामा, पृ० ६८१ ।
३. यह वि० सं० १७२३ की भादों सुदि ३ ( ई० सन् १६६६ की २२ अगस्त) को मरा था।
४. आलमगीरनामा, पृ० ६८४ - ६८६ |
५. आलमगीरनामा, पृ० १०३१ - १०३२ । ख्यातों में लिखा है कि इसी वर्ष महाराज ने राजकर्मचारियों के वेतन में वृद्धि कर रिश्वत लेने की सख्त रोक कर दी थी ।
६. आलमगीरनामा, पृ० १०३७ ।
लेटरमुग़ल्स में लिखा है
७.
"He was sent to serve in the Dakhin, then in Kabul, then again in the Dakhin." (भाग १, पृ० ४४ ) परन्तु वास्तव में यह काबुल न जाकर लाहौर से ही लौट आए थे, जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका है ।
८. आलमगीरनामे में हि० सन् १०७७ की ७ और १६ शव्वाल के बीच बादशाह को
इसकी सूचना मिलना लिखा है (देखो पृ० १०३७ - १०३८ और १०४२ ) । परन्तु यह समय चैत्र सुदि ८ ( २३ मार्च) से वैशाख वदि ३ ( १ अप्रैल) के बीच आता है । अतः यह ठीक नहीं है ।
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