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मारवाड़ का इतिहास
है । हाँ यदि आप वास्तव में ही पिता से मिलना चाहते हैं, तो इस विशाल - वाहिनी को यहीं छोड़ थोड़े से ख़ास पुरुषों के साथ आगरे जा सकते हैं । जब औरङ्गजेब ने महाराज पर अपना रंग जमता न देखा, तब उसने गुप्त रूप से शाही सेना के नायक क़ासिमंखा को अपनी तरफ़ मिला लिया । इसके बाद वि० सं० १७१५ की वैशाख वदि ८ ( ई० स० १६५८ की १५ अप्रैल) को महाराज और शाहजादों की सेनाओं के बीच युद्ध ठनं गया । जैसे ही दोनों सेनाओं का सामना हुआ, वैसे ही महाराज की सेना के हाडा मुकनसिंहजी ( कोटा नरेश ), राठोड़ रत्नसिंहजी ( रतलाम नरेश ), झाला दयालदास, गौड़ अर्जुन ( अजमेर - प्रान्त के राजगढ़ का राजा ) आदि वीरों ने आगे बढ़ औरङ्गजेब के तोपखाने पर आक्रमण कर दिया और उसको विध्वस्त कर ये लोग उसकी हरावल ( आगे की ) फौज पर टूट पड़े। महाराज जसवन्तसिंहजी भी, जो स्त्रयं सेना के मध्यभाग का संचालन कर रहे थे, आगे बढ़ गए और शाहजादों की सेना की क़तारों को नष्ट-भ्रष्ट करते हुए औरङ्गज़ेब से सम्मुख रण में लोहा लेने का प्रयत्न करने लगे । परन्तु इसी अवसर पर शाही सेना के नायक क़ासिमखाँ के विश्वासघात से शाही तोपख़ाने का बारूद समाप्त हो गया और उसके रिश्तेदारों ने, जो उक्त तोपख़ाने के संचालक थे, एकाएक अपनी तोपों का मुख बन्द कर दिया । स्वयं कासिमखाँ भी ऐन मौके पर शाही सेना के साथ रणांगण से भाग खड़ा हुआ । इससे महाराजा चारों ओर शत्रु से घर गये । ऐसे समय राठोड़ रत्नसिंहजी आदि ने महाराज के पास पहुँच प्रार्थना की कि अब आपका यहाँ ठहरना उचित नहीं है; क्योंकि विश्वासघाती सेना-नायक क़ासिमखाँ ने सारा मामला चौपट कर दिया है । साथ ही बचे हुए मुट्ठीभर राजपूत योद्धा भी अधिक समय तक रणस्थल को सँभाले रखने में असमर्थ हैं । यद्यपि इस पर भी महाराज की इच्छा रणस्थल से हटने की न थी, तथापि रत्नसिंहजी
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१. ख्यातों में लिखा है कि महाराज के साथ के २२ शाही अमीरों में से १५ मुसलमान अमीर औरंगज़ेब से मिल गए थे; केवल ७ हिन्दू-नरेश और सरदार महाराज के साथ रह गए थे ।
२. विन्सेंटस्मिथ ने इस युद्ध का धर्मत में होना लिखा है । यह स्थान उज्जैन से १४ मील ( दक्षिण की तरफ झुकता हुआ ) नैर्ऋत कोण में था ( ऑक्सफोर्ड हिस्ट्री ऑफ इंडिया, पृ० ४१० ) । परन्तु ख्यातों में इसका चोरनराणा गाँव के पास होना पाया जाता है । साथ ही आलमगीरनामे से दोनों स्थानों का एक दूसरे के निकट होना सिद्ध होता है ( पृ० ५६ ) । कहीं-कहीं युद्ध की तिथि ८ के बदले ६ भी लिखी है ।
३. 'आलमगीरनामा', पृ० ६६-६७ ।
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