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मारवाड़ का इतिहास
वि० सं० १७१४ ( ई० स० १६५८ ) में बादशाह शाहजहाँ बीमार हो गया और साथ ही लोगों में उसके मरने की अफवाह फैल गई । इस पर उसका बड़ा पुत्र दाराशिकोह उसे दिल्ली से यमुना के मार्ग द्वारा आगरे ले आया । इसकी सूचना पाते ही शाहजहाँ के द्वितीय पुत्र शाहजादे शुजा ने अपने को सूबे बंगाल में बादशाह घोषित कर दिया और इसके बाद वह सेना सज कर पटने के मार्ग से आगरे की तरफ़ चला । तीसरा पुत्र औरंगज़ेब राज्य पर अधिकार करने की इच्छा से दल-बल-सहित दक्षिण से रवाना हुआ और चौथा पुत्र मुराद अहमदाबाद ( गुजरात में ) तख़्त पर बैठ गया । यह देख दाराशिकोह ने बादशाह से कहकर महाराज का मनसत्र ७,००० ज्ञात और ७,००० सवार ( जिसमें ५,००० सवार दुस्पा से स्पा थे ) का करवा दिया और इसी के साथ इन्हें १०० घोड़े, जिनमें एक सुनहरी जीन का महाराज की सवारी के लिये था, चाँदी की अम्वारीवाला एक हाथी, एक हथिनी, एक लाख रुपए नक़द तथा मालत्रे की सूबेदारी दिलवाई। इसके बाद यह दारा के आग्रह से औरंगजेब को रोकने के लिये उज्जैन की तरफ़ भेजे गए और इनकी मदद के लिये शाही लश्कर के साथ क़ासिमख़ाँ नियत किया गया। साथ ही उस ( क़ासिमखाँ ) को यह भी कह दिया गया था कि यदि आवश्यकता समझे, तो गुजरात पहुँच मुराद को वहाँ से निकाल दे । जब महाराज के उज्जैन पहुँचने का समाचार औरंगजेब को मिला, तब उसने अपनी सेना में और भी वृद्धि कर उसे दृढ़ करने का प्रयत्न किया । इसी बीच
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१. ‘मआस्स्लिउमरा' में इस घटना का शाहजहाँ के ३२वें राज्यवर्ष में होना लिखा है
(देखो भा॰ ३, पृ० ६०० ) । परन्तु ओरियंटल बायोग्राफीकल डिक्शनरी' में शाहजहाँ का ३० वर्ष राज्य करना ही लिखा है ( देखो पृ० ३६३ ) | यह ३० वर्ष वाली गणना अँगरेज़ी वर्ष के हिसाब से की गई प्रतीत होती है ।
विन्सेंटस्मिथ की ऑक्सफोर्ड हिस्ट्री ऑफ इंडिया, पृ० ४०६ ।
'आलमगीरनामा' ( पृ० २७ ) और मारवाड़ की ख्यातों में इस घटना का समय क्रमशः हि० सन् १०६७ की ७ जिलहिज और वि० सं० १७१४ ( ई० सन् १६५७ ) दिया है । ये सब आपस में मिलते हैं ।
२. ‘मनासिरुल उमरा', भा० ३, पृ० ६०० - ६०१ । आलमगीरनामे में दाराशिकोह का मालवा अपनी जागीर में लेकर महाराज जसवंतसिंहजी को उधर भेजना लिखा है (देखो पृ० ३२ ) ।
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३. 'आलमगीरनामा', पृ० ३२-३३ ।
४. ख्यातों में वि० सं० १७१४ की माघ वदि ४ को इनका उज्जैन में पहुँचना लिखा है ।
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