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मारवाड़ का इतिहास इसके बाद इसी वर्ष के वैशाख में यह लौट कर बादशाह के पास चले गएं । इन दिनों शाहजादा खुर्रम नूरजहाँ बेगम के प्रपंच से नाराज होकर बागी हो रहा था। मौका पाकर उसने दिल्ली पर अधिकार करने की तैयारी की। जैसे ही इसकी सूचना बादशाह जहाँगीर को मिली, वैसे ही उसने शाहजादे परवेज को उसे दंड देने के लिये रवाना किया। उसके साथ महाबतखाँ और राजा गजसिंहजी को भी उधर जाने की आज्ञा दी गई । उस समय जहाँगीर ने महाराज का मनसब बढ़ा कर पाँच हजारी जात और चार हज़ार सवारों का कर दिया, और इसके साथ फलोदी का प्रांत जागीर में दिया । मालवे में पहुँचने पर खर्रम का और शाही सेना का सामना हुआ । परन्तु शीघही खर्रम को परास्त होकर दक्षिण की तरफ भागना पड़ा । इसके बाद शाहजादा परवेज़ अपने सहायकों को साथ लेकर बुरहानपुर चला गया और उसने इस युद्ध के समय की महाराज की वीरता से प्रसन्न होकर मेड़ते को परगना इन्हें उपहार में दे दिया ।
१. तुजक जहाँगीरी, पृ० ३६८ । २. नवलकिशोर प्रेस की छपी 'तुजुक जहाँगीरी' के पृष्ठ ३६६ पर गजसिंहजी के नाम के
आगे महाराज की उपाधि लगी होने से अनुमान होता है कि शायद इस अवसर पर
इनको यह पदवी दी गई हो ? ३. 'तुजुक जहाँगीरी', पृ० ३६६ । ४. अंग्रेज़ी इतिहासों में इस युद्ध का बल्लोचपुर में होना लिखा है । विसेंट स्मिथ के
लेखानुसार यह दिल्ली के दक्षिण में था ('ऑक्सफोर्ड हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया', पृ० ३८६)। ५. ख्यातों में लिखा है कि बादशाह ने इस अवसर पर अजमेर का सूबा शाहज़ादे परवेज़
को जागीर में दे दिया। इस पर उसने मेड़ता सैयदों को सौंप देने का विचार किया । परन्तु राजा गजसिंहजी ने कुंपावत राजसिंह को भेज कर महाबतखाँ से इसकी शिकायत की । उसने भी उस समय महाराज को अप्रसन्न करना उचित न जान शाहज़ादे को ऐसा करने से रोक दिया । परन्तु उन्हीं ख्यातों में लिखा है कि वि० सं० १६७६ (ई० सन् १६२२) में मेर जाति के जंगली लोगों ने मेड़ता प्रांत के पशुओं को पकड़ने का उद्योग किया । यह देख वहाँ के शाही शासक ने उन पर चढ़ाई की । मार्ग में जिस समय वह नंदवाणा नामक गाँव में पहुँचा, उस समय वहाँ के ब्राह्मणों (नंदवाणे बोहरों) की संपत्ति को देख उसने उनके बहुत से मुखियाओं को पकड़ लिया। इसकी सूचना पाते ही बलूँदे के ठाकुर मेड़तिया श्मामसिंह और जैतारन के हाकिम पंचोली राघोदास आदि ने उसका पीछा किया । मुंगदड़ा गाँव के पास पहुंचते पहुँचते दोनों का सामना हो गया । इससे थोड़ी देर के युद्ध में ही उक्त शाही शासक ब्राह्मणों को छोड़ कर भाग गया।
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