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महाराजा जसवंतसिंहजी (प्रथम) दिया और महाराज को अपने खास तबेले से सुनहरी जीन-सहित एक घोड़ा सवारी के लिये दिया ।
इसके बाद जिस समय बादशाह शाहजहाँ लाहौर की तरफ़ गया, उस समय महाराज भी उसके साथ रवाना हुए । परन्तु मार्ग में कुछ दिन के लिये यह दिल्ली में ठहर गए और जब बादशाह वाकरवाड़े ( पालम परगने में ) पहुँचा, तो जाकर उसके साथ हो गएँ। इख़्तयारपुर पहुँचने पर बादशाह ने इन्हें फिर खासा खिलअत और सुनहरी जीन का खासा घोड़ा देकर इनका मान बढ़ाया । इसके बाद सरदी का मौसम आ जाने के कारण उसने महाराज के पहनने के लिये एक पोस्तीन, जिसके ऊपर ज़री और नीचे संभूर के बाल लगे थे, भेजा ।
माघ वदि ४ ( ई० स० १६३६ की १३ जनवरी ) को महाराज का मनसब पाँचहज़ारी जात और पाँच हज़ार सवारों का कर दिया गया । ख्यातों से ज्ञात होता है कि इसी के साथ इन्हें जैतारन का परगना भी जागीर में मिला था। इसके तीन मास बाद बादशाह ने इन्हें फिर एक खासा हाथी देकर इनका सत्कार किया ।
१. यह पहले राजा गजसिंहजी का भी प्रधानमंत्री रह चुका था और उसके बाद शाहजहां ने
इसको वि सं० १६६५ की भादों वदि २ (ई० स० १६३८ की १६ अगस्त) को एकहज़ारी जात और चार सौ सवारों का मनसब देकर शाही अमीरों में ले लिया था।
बादशाहनामा, जिल्द २, पृ० १०५ । २. बादशाहनामा, जिल्द २, पृ० ११० । इस घटना का समय भादों वदि ४ ( १८ अगस्त)
लिखा है। ३. बादशाहनामा, जिल्द २, पृ० ११३ । इस घटना का समय आश्विन वदि १२
(२४ सितम्बर ) लिखा है। ४. बादशाहनामा, जिल्द २, पृ० ११४-११५ । यह घटना आश्विन सुदि ६ (६ अक्टोबर)
को हुई थी। ५. बादशाहनामा, जिल्द २ पृ० १२८ । यह घटना पौष वदि २ (१२ दिसम्बर ) की है। ६. बादशाहनामा, जिल्द २, पृ० १३३ । उस समय अमीरों को अधिकतर ऊँचे-से-ऊँचा
यही मनसब मिला करता था और इसके साथ की जागीर की आमदनी शायद पच्चीस
लाख वार्षिक के करीब होती थी ? ७. बादशाहनामा, जिल्द २, पृ० १४४ । यह घटना वि० सं० १६६६ की चैत्र सुदि ११ (ई० सन् १६३६ की ४ अप्रैल ) की है ।
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