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राजा गजसिंहजी इस युद्ध में इन्होंने मलिक अंबर (चंपू ) का लाल झंडा छीन लिया था । इस घटना की यादगार के उपलक्ष में उसी दिन से जोधपुर के राजकीय झंडे में लाल रंग की पट्टी लगाई जाने लगी ।
बादशाह ने महाराज की दक्षिण की इन वीरतायों से प्रसन्न होकर वि० सं० १६७९ की चैत्र सुदि १ ( ई० सन् १६२२ की ११ मार्च) को इन्हें एक नक्कारा उपहार में दिया ।
वि० सं० १६८० ( ई० सन् १६२३ ) में महाराज दक्षिण से लौट कर जोधपुर आए और कुछ दिन यहाँ रह कर देश के प्रबंध की देख भाल करते रहे ।
१. 'तुजुक जहाँगीरी', पृ० ३५१ ।
'गुणरूपक' में महाराज की गद्दीनशीनी से लेकर इस घटना तक का हाल इस प्रकार लिखा है :
राजा शूरसिंहजी के स्वर्गवास के बाद राजा गजसिंहजी ( २४ वर्ष की अवस्था में ) वि० सं० १६७६ की विजया दशमी के दिन बुरहानपुर गद्दी पर बैठे। इन्होंने दक्षिण की तरफ जाते समय जोधपुर के किले की रक्षा का भार कूँपावत राजसिंह को सौंपा था । जिस समय यह दक्षिण में थे उस समय कंधार से भी एक बड़ी सेना दक्षिण वालों की मदद में आई थी । कर्णाटक, विजयनगर, गोलकुंडा और बराड़ आदि के युद्धों में राजा गज सिंहजी सदाही अपनी सेना के साथ शाही सेना के अग्रभाग ( हरावल ) में रहा करते थे। इसी प्रकार महकर के युद्ध में भी; जिसमें शत्रु के ८,००० घुड़ सवारों ने भागलिया था, महाराज अपनी राठोड़ सेना के साथ शाही सेना के अग्रभाग में थे । इस युद्ध में शत्रुओं के ५०० सवार मारे गए और महाराज की वीरता से ही शाही सेना को विजय प्राप्त हुई । गजसिंहजी ने बुरहानपुर के युद्ध में दक्षिणियों को परास्त करने में बड़ी वीरता दिखाई थी । शाहज़ादा खुर्रम भी उस समय वहीं था । इस कार्य से प्रसन्न होकर बादशाह ने इनका मनसब ५,००० जात का करदिया और इसी के साथ इन्हें नक्कारा, तोग़, सुनहरी साज़ के घोड़े और जालोर तथा साँचोर के परगने दिए। इसके बाद महाराज ने मलकापुर, रोहिणखेड़ा, बालापुर, महकर, निरोह, खिड़की, दौलताबाद, मग्गी पट्टन, खानदेश, महाराष्ट्र और बराड़ के युद्धों में दक्षिण वालों की सेनाओं पर विजय प्राप्त की । दक्षिण के पाँच खास युद्दों में तो, जो (१) महकर, (२) मेहाना, (३) बालापुर, (४) बुरहानपुर और (५) दक्षिण के पिछले प्रान्त में हुए थे, इन्होंने खास वीरता दिखलाई थी । कुछ दिन बाद जब खुर्रम माँडू आया, तब उसने महाराज को अपने पास बुलवाया और इनकी वीरता की प्रशंसा कर इन्हें अपने देश जाने की आशा दी। इसी के अनुसार यह जोधपुर चाकर ६ मास तक यहाँ के प्रबन्ध की देखभाल करते रहे । (देखो पृ० ३२-६६ ) ।
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