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मारवाड़ का इतिहास
इस मनसब वृद्धि के साथ इन्हें फलोदी का परगना जागीर में मिला । यह पहले बीकानेर के राव रायसिंहजी और उनके पुत्र सूरजसिंहजी के अधिकार में रह चुका था । __ अभी महाराज बादशाह के साथ अजमेर में ही थे कि, इसी वर्ष की ज्येष्ठ सुदी १ ( ई० सन् १६१५ की २६ मई ) की रात को इनके भ्राता राजा किशनसिंहजी ने भाटी गोविंददास के मकान पर अचानक आक्रमण कर उसे मार डाला । जैसे ही इस हल्ले से पास के मकान में सोते हुए महाराज की आँख खुली, वैसे ही यह स्वयं खड्ग लेकर बाहर निकल आए । इसी बीच इनके योद्धा मी सजग हो गए और उन्होंने आक्रमणकारियों को चारों तरफ से घेर कर मार डाला । इस युद्ध में राजा
तक पहुंच गए थे । परन्तु पीछे से इन मनसबों का महत्त्व बहुत कुछ घट गया । बादशाह मोहम्मदशाह के समय में फर्रुखाबाद के नवाब का मनसब ५२ हज़ारी तक पहुँचा था । अकबर के समय पाँच हज़ारी मनसबदार का वेतन २६ हज़ार था । उसे १६८ हाथी,
२७२ घोड़े, १०८ ऊँट और २०७ गाड़ियाँ रखनी पड़ती थीं। १. फलोदी हकूमत के कोट की बुर्ज में वि० सं० १६५० की आषाढ़ सुदी ६ का एक लेख
लगा है । उससे उस समय वहाँ पर रायसिंहजी का राज्य होना पाया जाता है । २. किशनसिंहर्जा के इस प्रकार अचानक आक्रमण कर भाटी गोविंददास को मारने का
कारण उनके भतीजे गोपालदास का उसके हाथ से मारा जाना था। उस घटना का हाल इस प्रकार लिखा मिलता है:-एक बार राठोड़ सुंदरदास, जोधा (रामदास के पुत्र) शूरसिंह और (कल्ला के पुत्र) नरसिंह ने मिल कर राठोड़ भगवानदास के पुत्र गोपालदास पर हमला किया। उस समय भाटी गोविंददास के भाई (लवेरा के स्वामी) सुरतान ने गोपालदास का पक्ष लिया । युद्ध होने पर सुरतान मारा गया । परन्तु उसने मरने के पूर्व ही नरसिंह को मार लिया । उस समय तक गोपालदास भी अच्छी तरह से जख्मी हो चुका था । इसलिये वह अपने को बचे हुए दो शत्रुओं का सामना करने में असमर्थ जान युद्धस्थल से भाग खड़ा हुआ । यह समाचार सुन भाटी गोविंददास ने सोचा कि मेरे भाई ने तो गोपालदास के लिये युद्ध में अपने प्राण दिए । परन्तु उसके मरने पर वह (गोपालदास ) स्वयं अपने प्राणों के मोह से युद्ध छोड़ कर भाग गया। यह बात गोविंददास को अच्छी न लगी। इस पर उसने अपने भाई का बदला लेने के लिये गोपालदास का पीछा किया और काकडखी गांव के पास पहुँचते पहुँचते उसे मार डाला।
इस घटना का समाचार सुन राजा किशनसिंहजी गोविंददास से नाराज़ हो गए । उनका ख़याल था कि राजा शूरसिंहजी स्वयं ही उससे अपने भतीजे का बदला लेने का प्रबंध करेंगे । परन्तु जब महाराज ने उधर कुछ भी ध्यान नहीं दिया, तब उन्होंने इस प्रकार नैश आक्रमण कर गोविंददास को मार डाला । परन्तु इसी में उन्हें भी अपने प्राण देने पड़े ।
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