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मारवाड़ का इतिहास के साथ बादशाह के पास अजमेर चले गए । इसी समय बादशाह ने इनके सवारों में ३०० की वृद्धि कर इनका मजलव पाँच हज़ारी जात और तेंतीस सौ सवारों का कर दिया । साथ ही उसने इन्हें एक खिलअत और एक घोड़ा भी दिया । इसके बाद यह दक्षिण पहुंच खाँनजहाँ लोदी आदि शाही सेनानायकों के साथ वहाँ के उपद्रवों को दबाने और शत्रुओं को परास्त कर उनके प्रदेशों को विजय करने में लग गए।
__ 'तारीखे पालनपुर' में लिखा है कि वि० सं० १६७४ (ई० सन् १६१७ ) में बादशाह जहाँगीर ने जालोर के शासक पहाड़खाँ को मरवा कर उक्त प्रदेश को शाहजादे खर्रम की जागीर में मिला दिया । परन्तु वहाँ का प्रबंध ठीक न हो सकने के कारण बाद में वह प्रांत राजा शूरसिंह जी को दे दिया । इस पर महाराज की
१. तुजुक जहाँगारा, पृ० १४६ । २. तुजक जहाँगीरी, पृ० १४८ । ३. 'मासिरुल-उमरा ( भा॰ २, पृ०१८२ ) में भी इस घटना का समय जहाँगीर का
१० वाँ राज्य वर्ष लिखा है । यह वि० सं० १६७१ की चैत्र बदी ६ (ई० सन् १६१५
की १० मार्च) प्रारंभ हुआ था । ख्यातों में लिखा है कि दक्षिण की तरफ जाते हुए महाराज ने मार्ग में पिसाँगण से राजकुमार गजसिंहजी, आसोप ठाकुर (बीवाँ के पुत्र ) राजसिंह, व्यास नाथा और भंडारी लूणा को मारवाड़ की देख भाल के लिये जोधपुर भेज दिया था। ४. कर्नल टाड के लिखे राजस्थान के इतिहास में लिखा है कि अकबर की मृत्यु के बाद
जब राजा शरसिंही राजकुमार गजसिंहजी को लेकर शाही दरबार में गए, तब जहाँगीर ने जालोर को विजय करने में अद्भुत वीरता दिखाने के कारण गजसिंहजी को अपने
हाथ मे एक तलवार भेट की। जालोर विजय का हाल कर्नल टाड ने इस प्रकार लिखा है:
जालोर उस समय गुजरात के बादशाहों के अधीन था। परन्तु जैसे ही राजकुमार गजसिंहजी को जालोर-विजय के लिये कहा गया, वैने ही उन्होंने सेना लेकर बिहारी पठानों पर चढ़ाई करदी । जिस जालोर दुर्ग को फतह करने में अलाउद्दीन को कई वर्ष लग गए थे, उसी को उन्होंने केवल तीन मास में विजय कर लिया ।
यद्यपि इस युद्ध में बहुन राठोड़ वीर मारे गए, तथापि राजकुमार गजसिंहजी बिना किसी हिचकिचाहट के तलवार हाथ में लेकर काट की साड़ी के ज़रिये किले पर चढ़ गए । वहां पर के युद्ध में ७.००० पठान मारे गए । इसके बाद किले पर उनका अधिकार हो गया । (देखो ऐनाल्स एण्ड एण्टि क्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान ( क्रुक संपादित), भा॰ २, पृ० ६७०)। परंतु जालोर पर (१) बारे बरस अलाउदी, खपछटो पतशाह ।
. चढ़ियाँ घोडाँ सोनगढ़, तें लीनौ गजशाह ॥
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