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मारवाड़ का इतिहास
वि० सं० १६६३ की कार्तिकं सुदी ७ ( ई० सन् १६०६ की २७ अक्टोबर ) को यह जोधपुर आए और वि० सं० १६६५ ( ई० सन् १६०८) के वैशाख में
आगरे पहुँच बादशाह जहाँगीर से मिले। इसी वर्ष की मँगसिर बदी २ (१३ नवम्बर) को बादशाह ने इनका मनसव ३,००० जात और २,००० सवारों का करके इनको खानखानान् के साथ दक्षिण की तरफ़ भेजा । इसके बाद इनके कार्यों से प्रसन्न होकर
ही देर के युद्ध में बहुत से कोली मारे गए और बचे हुए जंगल की तरफ भाग चले । यह देख राठोड़ सवारों ने उनका पीछा किया । यद्यपि राठोड़ गोपालदास ने उनको इस कार्य से रोकना चाहा, तथापि विजय से उन्मत्त हुए योद्धाओं ने इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया । राठोड़ों को अपने पीछे लगा देख कोली भी जल्दी से जंगल और पहाड़ की आड़ लेकर पलट पड़े और जैसे ही राठोड़ सवार उनकी मार के भीतर पहुँचे, वैसे ही उन्होंने उनपर तीरों की वर्षा शुरू करदी । एक तो वैसे ही राठोड़ घोड़ों पर सवार होने से सघन बन और पथरीली ज़मीन में उनका पीछा नहीं कर सकते थे, दूसरे जंगली मार्गों से भी वे बिलकुल अपरिचित थे । इससे उन्हें बड़ी तति सहनी पड़ी। उनके साथ के राठोड़ सूरजमल, राठोड़ गोपालदास, मेड़तिया हरिसिंह और जसवंत कलावत आदि बहुत से सरदार मारे गए । यह देख महाराज को बड़ा दुःख हुआ
और यह लौटकर अहमदाबाद चले गए । वहाँ से कुछ दिन बाद जोधपुर आने पर महाराज ने माँडवी के युद्ध में मारे गए सरदारों के कुटुम्बों के साथ बड़ी समवेदना
प्रकट की । फ़ारसी तवारीखों में इस युद्ध का उल्लेख नहीं है । परन्तु 'बांवे गजेटियर' में लिखा है कि ई० सन् १६०६ में राजा शूरसिंह और राजा टोडरमल का पुत्र राय गोपीनाथ मालवा, सूरत और बड़ोदा के मार्ग से गुजरात भेजे गए । वहाँ पहुँच इन्होंने बेलापुर के शासक कल्याण को हराकर कैद करलिया । परन्तु माँडव के शासक के साथ के युद्ध में ये असफल होकर अहमदाबाद को लौट गए । (देखो भा० १, खण्ड १, पृ० २७३) । १. ख्यातों में कार्तिक के स्थान पर फागुन भी लिखा मिलता है । इसके अनुसार ई० सन्
१६०७ की २३ फरवरी को इनका आना सिद्ध होता है । २. तुजुकजहाँगीरी, पृ० ६८ । ख्यातों में लिखा है कि (मोटा राजा उदयसिंहजी का पुत्र)
भगवानदास बुंदेला दला के हाथ से मारा गया था । इससे भगवानदास के पुत्र गोविंददास ने इसका बदला लेने के लिये महाराज से सहायता की प्रार्थना की। इस पर इन्होंने ( सादूल के पुत्र ) मुकुंददास को कुछ चुने हुए योद्धा देकर उसके साथ
करदिया । इन लोगों ने बुंदेलखंड में पहुँच दला को मार डाला । ३. तुजुकजहाँगीरी, पृ० ७४ ।
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