________________
मारवाड़ का इतिहास इस पर वह अपनी राठोड़ सेना के कुछ चुने हुए वीरों को लेकर वहाँ जा पहुँचे । इससे उधर की मेवाड़ वालों की लूटमार विलकुल बंद हो गई।
उस समय महाराज के दक्षिण में होने से जोधपुर का सारा प्रबंध महाराज कुमार गजसिंहजी और भाटी गोविंददास के हाथ में था । वि० सं० १६६८ (ई० सन् १६११) में महाराना अमरसिंहजी के योद्धाओं ने अहमदाबाद से आगरे को जाते हुए व्यापारियों के एक संघ का ( मारवाड़ राज्य के ) दूनाड़ा नामक गाँव तक पीछा किया । परन्तु देर हो जाने के कारण व्यापारियों के बहुत आगे बढ़ जाने से वे उसे लूट न सके । इसके बाद जिस समय वे लोग वापिस लौटे उस समय इसकी सूचना पाकर मालगढ़ और भाद्राजन के करीब भाटी गोविंददास ने इन पर हमला कर दिया। यह अचानक आक्रमण देख कुछ देर तक तो मेवाड़ वालों ने भी उसका सामना किया । परन्तु अंत में अपने बहुत से वीरों के मारे जाने के कारण उन्हें युद्ध स्थल से भाग जाना पड़ा। इस युद्ध में राठोड़ों की तरफ़ के भाटी गोपालदास, राठोड़ खींवा और खिदमतगार मान बड़ी वीरता से लड़कर मारे गएँ । अगले वर्ष जब बादशाह आषाढ़ बदी ५ई० सन् १६०६ की १२ जून सोमवार) को महाबतखाँ के स्थान में अब्दुल्लाखाँ का नियत किया जाना लिखा है । ( देखो पृ० ७५)। गणना से 'राजपूताने के इतिहास के पृष्ठ ७६५ पर लिखी रबिउल आखिर की उस (१६) तारीख को दोशंबा नहीं आता । इसी के साथ 'तुजुक जहाँगीरी' में यह भी लिखा है कि इसी वर्ष की १४ रजब (वि० सं० १६६६ की आश्विन सुदी १५=ई० सन् १६०६ की ३ अक्टोबर ) को अब्दुल्लाखाँ की विजय के समाचार बादशाह के पास पहुँचे । (देखो पृ० ७६)। १. इससे पहले उक्त थाने का प्रबंध गज़नीखाँ के हाथ में था । नीलकंठ महादेव के मन्दिर
के पीछे लगे वि० सं० १६६६ की ज्येष्ठ सुदी १५ (ई० सन् १६०६ की ७ जून) के लेख से प्रकट होता है कि जहाँगीर के राज्य समय गज़नीखाँ ने वहाँ के थाने के
चारों तरफ़ कोट बनवाकर उक्त नगर का नाम नूरपुर रक्खा था। 'गुणरूपक' में लिखा है कि राजकुमार गजसिंहजी ने इस अवसर पर नाडोल, जोजावर, चाँमलौद ? (चाँणोद), खोड़, सादड़ी, कुंभलमेर आदि में विजय प्राप्त कर सोलंकी, बालेसा, सींधल और सीसोदियों को दबाया और नाडोल के थाने की रक्षा का प्रबंध किया। (देखो गुणरूपक, पृ० ६.१०)।
२. 'वीरविनोद' में कुँवर कर्णसिंह आदि का शाही खज़ाने का पीछा करना लिखा है । ३. उस समय गोविंददास नाडोल के थाने पर था। ४. 'गुणरूपक' में लिखा है कि गजसिंहजी के बढ़ते हुए प्रताप को देख महाराना ने एक सेना
मारवाड़ मे उपद्रव करने के लिये रवाना की । परन्तु गजसिंहजी और गोविंददास ने
१८८
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com