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सवाई राजा शूरसिंहजी के बुलवाने पर राजा शूरसिंहजी दक्षिण से लौटते हुए सिरोही के गाँव पाडीव में पहुँचे, तब वहाँ के राव राजसिंहजी ने इनका प्रभाव और बल देखकर इनसे मित्रता कर लेने का विचार किया । इसी के अनुसार उन्होंने अपने विश्वस्त पुरुषों-देवड़ा पृथ्वीराज और भैरूँदास को महाराज के पास भेजकर कहलवाया कि यदि आप पुराना (रायसिंहजी की मृत्यु का ) वैर छोड़कर मेरी मदद करना स्वीकार करलें, तो मैं अपने छोटे भाई शूरसिंह की कन्या राजकुमार गजसिंहजी को ब्याहने को तैयार हूँ। भाटी गोविंददास के कहने से महाराज ने यह बात मान ली । परन्तु इसी के साथ नीचे लिखी दो बातें और भी तय की गई:१-जिस दिन राजकुमार गजसिंहजी को कन्या ब्याही जावे, उसी दिन राव
रायसिंहजी के साथ मारे गए अन्य २१ राठोड़ों के कुटुम्ब वालों के साथ
भी चौहानों की अन्य २१ कन्याएँ ब्याही जायँ । २-देवड़ा बीजा का जड़ाऊ कटार, स्वर्गवासी राव रायसिंहजी का नक्कारा
और उनके शिविर का लूटा हुआ सामान राजकुमार और महाराज को भेट
के रूप में दिया जाय । इस प्रकार सारी बातें तय हो जाने पर वि० सं० १६६६ की फागुन बदी ६ (ई० सन् १६१३ की ३१ जनवरी) को दोनों पक्षों के बीच एक अहदनामा लिखा गया ।
उसके मुकाबले में पहुँच उसे और महाराना अमरसिंहजी के राजकुमारों को मार भगाया।
(देखो पृ० १०)। १. 'सिरोही के इतिहास' (के पृ० २४५ ) में पं० गौरीशंकरजी अोझा ने लिखा है कि
सिरोही के राव के विरुद्ध अपना पक्ष प्रबल करने के लिये ही यह अहदनामा उसके छोटे भाई शूरसिंह ने लिखा था। परन्तु अोझार्जा स्वयं वहीं पर देवड़ा पृथ्वीराज को महाराव राजसिंह का विश्वस्त पुरुष लिखते हैं और उस अहदनामे पर देवड़ा भैरूँदास के साथ ही इस पृथ्वीराज के भी हस्ताक्षर मौजूद हैं। ऐसी हालत में आप का लिखना कहाँ
तक मान्य कहा जा सकता है ? । जोधपुर नरेश की तरफ से इस पर हस्ताक्षर करनेवाले पुष्करना ब्राह्मण कल्याणदास और बारहठ दुरसा थे ।
'गुणरूपक' में लिखा है कि पुराने वैर का बदला लेने के लिये गजसिंहजी ने आबू और सिरोही. के देवड़ों (चौहानों) को हराकर उनका प्रसिद्ध कटार छीन लिया (देखो पृष्ठ १०-११)।
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