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सवाई राजा शूरसिंहजी ही उसने शाहजादे को लिखा कि राजा शूरसिंहजी बहुत समय से शाही कार्यों में लगे रहने के कारण अपने देश को नहीं जा सके हैं, इसलिये उनको यहाँ भेज दो
और उनके प्रधान मंत्री भाटी गोविंददास को राठोड़ों की सेना के साथ अपने पास रहने दो' । इसी के अनुसार यह वि० सं० १६६१ ( ई० सन् १६०४ ) में बादशाह से मिलकर जोधपुर चले आए।
मारवाड़ की ख्यातों से प्रकट होता है कि इसी अवसर पर बादशाह ने इन्हें 'सवाई राजा' के खिताब के साथ मेड़ते का प्राधा प्रांत और जैतारन जागीर में दिए थे।
गुजरात प्रांत के और दक्षिण के युद्धों में महाराज को बहुत-सा द्रव्य मिला था। इससे जोधपुर पहुँच कर इन्होंने एक बड़ा यज्ञ किया। इसके बाद इनकी आज्ञा से भंडारी मना ने राजकीय सेना के साथ जाकर मेड़ते और जैतारन पर अधिकार कर लिया। इसी अवसर पर जैतारन के चारों तरफ शहर पनाह बनवाई गई और वहाँ का बहुत-सा प्रांत महाराज की तरफ़ से ऊदावतों को दे दिया गया।
वि० सं० १६६२ (ई० सन् १६०५ ) में बादशाह अकबर मर गया और उसका पुत्र जहाँगीर के नाम से हिन्दुस्तान के तहत पर बैठा । इसी समय गुजरात में फिर उपद्रव उठ खड़ा हुआ । इससे अन्य बादशाही अमीरों के साथ सवाई राजा शूरसिंहजी को भी उधर जाना पड़ा । वहाँ पर भी इन्होंने उपद्रव को दबाने में अच्छी वीरता दिखलाई ।
१. अकबरनामा, भा० ३, पृ० ८२० । २. इसी वर्ष राजा शूरसिंह जी ने बादशाह के कहने से मीर सदर मोइम्माई के पुत्र को पकड़
कर पाटन (गुजरात) में मुर्तज़ा अली के हवाले कर दिया, जहाँ से वह अकबर की
राज्य सीमा से बाहर निकाल दिया गया । (अकबरनामा, भा० ३, पृ० ८३१)। ३. मेड़त का आधा प्रांत तो मेड़तिया जगन्नाथसिंह से लेकर बादशाह ने पहले ही इन्हें
दे दिया था। इस अवसर पर बाकी का आधा प्रांत भी किशनदास से लेकर महाराज
को दे दिया। ४. ख्यातों में लिखा है कि अकबर के मरते ही गुजरात के कोलियों ने उपद्रव उठाया।
इस पर जहाँगीर ने राजा रसिंहजी को उनके उपद्रव को दबाने के लिये भेजा । इन्होंने मांडवी के पास पहुँच अपनी सेना के दो विभाग किए । एक का सेनापति भाटी गोविंददास और दूसरे का राठोड़ सूरजमल बनाया गया । इसके बाद महाराज की आज्ञा से इन दोनों ने मिलकर कोलियों पर आगे और पीछे दोनों तरफ से हमला कर दिया । कुछ
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