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राव रायसिंहजी ही ये इसके कारण की जाँच करने को शिविर से बाहर चले आए । परन्तु इसी बीच शत्रुओं ने वहाँ पहुँच इन्हें चारों तरफ से घेर लिया। अंत में ये दोनों विना शस्त्र होने के कारण शीघ्र ही सम्मुख रण में मारे गएं । यह घटना वि० सं० १६४० की कार्तिक शुक्ला ११ (ई० सन् १५८३ की १७ अक्टोबर ) की है।
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१. अकबरनामा, भाग ३, पृ० ४१३ । ।
महामहोपाध्याय पं. गौरीशंकरजी अोझा ने अपने 'सिरोही के इतिहास' (पृ. २३१) और 'राजपूताने के इतिहास' (पृ० ७३७ ) में सुरतान के नैश-अाक्रमण का उल्लेख न कर लिखा है कि जिस समय जगमाल के साथ के कुछ योद्धा 'भीतरट' पर अधिकार करने को चले गए, उस समय मौका पाकर सुरतान ने रायसिंह आदि पर हमला कर दिया । परन्तु अकबरनामे और मारवाड़ की ख्यातों में स्पष्ट तौर से सुरतान के नैश-आक्रमण का उल्लेख मिलता है । उनमें यह भी लिखा है कि जगमाल और रायसिंह दोनों उस समय निःशस्त्र होने पर भी बड़ी वीरता से शत्रु का सामना कर मारे गए।
कहीं-कहीं इस युद्ध में राव रायसिंहजी की तरफ़ के २८४ योाओं का मारा जाना भी लिखा है।
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