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मारवाड़ का इतिहास
इसके बाद वि० सं० १६४० में राजा उदयसिंहजी पुष्कर की तरफ होते हुए जोधपुर चले आए और भादों बदी १२ ( ई० स० १५८३ की ४ अगस्त) को जोधपुर की गद्दी पर बैठे 1
विक्रम संवत् १६४० के माघ में जिस समय मिरजाखाँ ( अब्दुलरहीम खाँन ख़ाँनान् ) मुज़फ्फ़र गुजराती के उपद्रव को शान्त करने के लिये भेजा गया, उस समय मोटा राजा उदयसिंहजी भी उसके साथ थे । राजपीपला की लड़ाई में मुजफ्फर को
हार कर भागना पड़ा ।
इन दिनों भाद्राजन का हरराजिया नामक मीणा इधर-उधर लूट-मार कर बड़ा उपद्रव करने लगा था । इसलिये राजा उदयसिंहजी ने राठोड़ ( खींवा के पुत्र ) सूरजमल को उसे पकड़ने की आज्ञा दी। इसी के अनुसार उसने एक रात्रि को कुछ आदमियों के साथ अचानक पहुँच उसे पकड़ लिया । अन्त में हरराजिया के अपराधों पर विचार कर राजा उदयसिंहजी ने उसे मार डालने की आज्ञा दे दी । इससे दूसरे मीणे भी डर गए ।
छै, गऊतमस गोतर, अकुर साब (ख), तीन परवर, कुलदेवी' ईतरा जा है, प्रो । सेवड सेवग प्रोजा लोड जातरा सारसुत पुज पुजापारा | श्री देवकारजरा पीत्र कारजे लोड प्रोजरे हथ हुसी सं ॥ १६३५ रा माह सुद ५ ।
ईतरा नेघ फेर ईनायत किना १ जनम अस्टमी, २ ग्रांवली ईगीयारस, ३ वीरपुड़ी, ४ महाल (च) मी, ५ असासो, ६ जाया परणीयारी, ७ रीष पांचम, ८ अरती पुत्रणीयां वीay" .... ईतरानेग आल ओलाद पायं जासी, कोई उथापण पावे नहीं सं ॥ रुद दुवे परवानगी राठोड़
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१. वि० सं० १६४० की सावन बदी १ ( ई सन् १५८३ की २६ जून ) को उदयसिंहजी पुष्कर में अपना एक राजगुरु नियत कर उसको एक ताम्रपत्र लिख दिया था । उसमें इनकी उपाधि ‘महाराजाधिराज महाराजा' लिखी है ।
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इसी वर्ष इन्होंने जोधपुर के मुसलमानों को जुमे की नमाज़ पढ़ाने के लिये एक क़ाज़ी को दो सनदें दी थीं। इनमें से एक वि० सं० १६४० की श्रावण सुदी १२ ( ई० सन् १५८३ की २१ जुलाई ) की है, और दूसरी का संवत् कागज़ फट जाने से पढ़ा नहीं जाता। इनमें इनकी उपाधि 'महाराजाधिराज' लिखी है ।
२. 'अकबरनामे' के दकुतर ३, पृ० ४२३-४२४ में इस घटना का हि• सन् ६8२ में होना लिखा है, और 'तबकाते अकबरी', पृ० ३५७ - ३५८ में मुजफ्फर के साथ के युद्ध का १३ मोहर्रम शुक्रवार को होना लिखा है । ( परन्तु शायद इस आता है )
तारीख़ को गुरुवार
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