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मारवाड़ का इतिहास
२२. राजा उदयसिंहजी ____ यह राव मालदेवजी के पाँचवें पुत्र थे । इनका जन्म विक्रम संवत् १५६४ की माघ सुदी १३ (ई० स० १५३८ की १४ जनवरी) को हुआ था । राव मालदेवजी ने अपने जीते-जी ही इन्हें फलोदी का परगना जागीर में देकर वहां भेज दिया था। इसी से यह वहाँ रहकर अपनी जागीर का प्रबन्ध किया करते थे । वि० संवत् १६१६ (ई० स० १५६२ ) में जिस समय राव मालदेवजी का स्वर्गवास हुआ और उनकी इच्छा के अनुसार राव चन्द्रसेनजी जोधपुर की गद्दी पर बैठे, उस समय कुछ सरदारों के आग्रह से इन्होंने गाँगाणी आदि स्थानों पर अधिकार कर लिया था। इसी से राव चन्द्रसेनजी के और इनके बीच लोहावट में युद्ध हुआ । परन्तु अन्त में सरदारों ने बीच में पड़ दोनों भाइयों में मेल करवा दिया।
'तबक़ाते अकबरी' में लिखा है कि बादशाह अकबर के सातवें राज्य-वर्ष (हि० स० १६१ वि० सं० १६१९ ई० स० १५६२ ) में उस ( बादशाह ) ने अबदुल्लाखाँ को मालवे की सूबेदारी दी। इससे उसने शाही सेना के साथ वहाँ पहुँच बाजबहादुर को भगा दिया । इस पर वह (बाजबहादुर ) कुछ दिनों तक इधर-उधर भटक कर उदयसिंह की शरण में चला आयाँ और अन्त में यहां से गुजरात की तरफ चला गया।
वि० संवत् १६२७ में जिस समय बादशाह अकबर अजमेर से लौटकर नागौर आया, उस समय बीकानेर आदि देशी राज्यों के अनेक नरेश उससे मिलने और उसका अनुग्रह प्राप्त करने के लिये वहाँ आपहुँचे । यह देख उदयसिंहजी भी वहाँ जाकर उससे मिले । इसी अवसर पर राव चन्द्रसेनजी के बादशाही अधीनता अस्वीकार कर देने से वादशाह उनसे नाराज होगया, और उसने उनके वंश में विरोध उत्पन्न करने के लिये उनके बड़े भ्राता उदयसिंहजी को अपने साथ ले लिया।
इसके बाद शीघ्र ही उदयसिंहजी गूजरों के उपद्रव को दबाने के लिये समावली की तरफ़ भेजे गए । वहाँ के उपद्रव को शान्त करने में अच्छी सफलता प्राप्त करने के कारण बादशाह अकबर इनसे और भी प्रसन्न हो गया। अगले वर्ष खीचीवाड़े के उपद्रव को भी इन्होंने बड़ी योग्यता से दबादिया ।
१. कहीं वदि १३ भी लिखा है ? २. यह राव माल देवजी के छठे पुत्र थे । ३. देखो पृ० २५७ । परन्तु अकबरनामे में बाजबहादुर का राना उदयसिंह के पास जाना
लिखा है । यही ठीक प्रतीत होता है । ( देखो भा० २, पृ० १६६ )।
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