________________
राव चन्द्रसेनजी को हरायो । इसके बाद उसके बंधु केशवदास, महेशदास और राठोड़ पृथ्वीराज को साथ लेकर इसने सिवाने की तरफ़ प्रयाण किया । जिस समय यह विशाल शाही सेना सिवाने के आसपास के प्रदेश को लूटती और सामना करनेवालों को परास्त करती हुई सित्राने के पास पहुँची, उस समय वहाँ के दुर्ग-रक्षकों ने चंद्रसेनजी से पास के पहाड़ों का आश्रय लेकर समय की प्रतीक्षा करने की प्रार्थना की । इस पर यह सेनापति राठोड़ पत्ता को किले की रक्षा का भार सौंप पास के पहाड़ों में चले गए और किले को घेरनेवाली शाही सेना के पार्श्वे और पृष्ठ पर ज़ोर-शोर से आक्रमण कर उसे तंग करने लगे । किलेवालों ने भी बड़ी वीरता से दुर्ग घेरनेवाली शाही सेना का सामना किया । यद्यपि बादशाही सेना का बल बहुत बढ़ा-चढ़ा था, तथापि न तो चंद्रसेनजी ने ही और न इनके दुर्ग-रक्षक पत्ता ने ही हिम्मत हारी । राठोड़ वीर मौक़ा पाते ही शाही सैन्य पर आक्रमण कर उसे नष्ट करने में नहीं चूकते थे । इससे घबराकर बीकानेर के राव रायसिंहजी, जो चंद्रसेनजी से विरोध कर अकबर से मिल गए थे, वि० सं० १६३१ ( हि० सन् १८२ ) में सिवाने से अजमेर आए और उन्होंने बादशाह अकबर को सूचित किया कि आपने जो सेना सिवाने की तरफ़ भेजी है, वह चन्द्रसेन को दबाने में असमर्थ है । इसलिये हो सके, तो कुछ सेना और भी उस तरफ़ भेजी जाय । इस पर बादशाह ने तय्यबख़ाँ, सैयदबेग तोकबाई, सुभानकुली ख़ाँ तुर्क, खुर्रम, अजमतख़ाँ, शिवदास आदि अपने अन्य कई अमीरों को भी एक बड़ी
I
समर्थ न हुई, तब उसने
१. पहले तो कल्ला ने बड़ी वीरता से अकबर की सेना का सामना किया । परन्तु अंत में शाही सेना के संख्याधिक्य के कारण उसे सोजत का किला छोड़ सिरियारी के किले का आश्रय लेना पड़ा | परन्तु वहाँ पर भी शाही सेना ने उसका पीछा न छोड़ा और जब किले की दुर्गमता के कारण वह उस पर अधिकार करने में उस दुर्ग के चारों तरफ लकड़ियाँ चुनकर उसमें आग लगा दी । निकल कोरने चला गया । परन्तु जब पीछे लगी हुई सेना ने वहाँ भी उसका पीछा न छोड़ा, तब लाचार हो उसे शाही सेनानायकों से संधि करनी पड़ी और इसके बाद यद्यपि वह स्वयं तो बहाना कर शाही सेना में सम्मिलित होने से बच गया, तथापि उसे अपने बंधुओं को उक्त सेना के साथ भेजना पड़ा ।
इस पर कल्ला वहाँ से
२. मार्ग में चन्द्रसेनजी की तरफ़ के रावल मेघ (सुख) राज, सूजा और देवीदास ने मिलकर लूट मचाने को निकले हुए शाही सेना के सैनिकों के साथ बड़ी वीरता से युद्ध किया ।
( अकबरनामा, भा० ३, पृ० ८१ ) ।
३. अकबरनामा, भा० ३, पृ० ११०-१११
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
१५३
www.umaragyanbhandar.com