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मारवाड़ का इतिहास कुछ दिन के लिये यह सिरोही', दूंगरपुर और बाँसबाड़े की तरफ़ घूमते रहे । इन्हीं दिनों राव राम का पुत्र कल्ला मुसलमानों के हाथ से मारा गया और इससे सोजत पर भी मुग़लों का अधिकार हो गया । यह देख दूंपावत सादूल (महेशदास के पुत्र )
और जैतावत आसकरण ( देवीदास के पुत्र ) आदि सरदारों ने राव चन्द्रसेनजी से मारवाड़ में आकर देश की रक्षा करने का आग्रह किया। इससे यह मेवाड़ की तरफ़ से लौटकर अपनी मातृभूमि मारवाड़ में चले आए और शीघ्र ही इन्होंने सरवाड़ के बादशाही थाने को लूट कर वहाँ पर अपना अधिकार कर लिया । यह घटना वि० सं० १६३६ (ई० सन् १५७६ ) की है । इसके बाद इन्होंने अजमेर-प्रांत को लूटना शुरू किया । यह समाचार पाते ही बादशाह ने पायंदा मोहम्मदखां आदि के साथ बहुत-से अमीरों को इनके मुकाबले को जाने की आज्ञा दी । इस पर एक बार चन्द्रसेनजी ने भी दिल खोल कर इनका सामना किया, परन्तु अंत में इतने बड़े सम्मिलित शाही दल के सम्मुख रण में प्रवृत्त होना हानिकारक जान यह पहाड़ों में घुस गए । यह घटना वि० सं० १६३७ (हि० सन् १८८) की है।
इसके कुछ दिन बाद ही राव चन्द्रसेनजी ने फिर इधर-उधर से कुछ सेना एकत्र कर इसी वर्ष की श्रावण-वदि ११ ( ई० स० १५८० की ७ जुलाई) को सोजत पर हमला कर दिया और वहाँ पर अधिकार हो जाने पर सारण के पर्वतों में अपना निवास कायम किया । परन्तु यहीं पर वि० सं० १६३७ की माघ सुदी ७ (ई० सन् १५८१ की ११ जनवरी ) को इनका अचानक स्वर्गवास हो गर्यो ।
१. ख्यातों में लिखा है कि रावजी यहाँ पर करीब डेढ़ वर्ष रहे थे। २. ख्यातों में लिखा है कि वहाँ के रावल और उनके पुत्र के बीच में विरोध होने के कारण
वहाँ के किले पर इन्होंने अधिकार कर लिया था । परन्तु शाही सेना के आगमन के कारण
इन्हें वहाँ से हट जाना पड़ा। ३. अकबरनामे में लिखा है कि हि० स० ६८८ (वि० सं० १६३७) में सूचना मिली
कि राव चन्द्रसेन मालदेव का बेटा, जो पहले बादशाह के दरबार में हाज़िर हो चुका था बागी हो गया और शाही फौज के डर से छिप कर मौका देखता था । पर आजकल मौका पाकर अजमेर के इलाके में लूट-मार करने लगा है।
(अकबरनामा, भा० ३, पृ० ३१८) परन्तु चन्द्रसेनजी केवल वि० सं० १६२७ (ई० स० १५७० ) में एक बार ही नागोर में बादशाह से मिले थे । उसके बाद इनका बादशाह से दुबारा मिलना न तो फारसी तवारीखों से ही और न ख्यातों से ही सिद्ध होता है । अतः अकबरनामे का यह लेख उसी घटना को दुहराता है।
४. मारवाड़ की ख्यातों में लिखा है कि जिस समय राव चन्द्रसेनजी सोजत पर अधिकार
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